स्विट्जरलैंड: हर नागरिक के लिए बंकर की गारंटी
आप शांति चाहते हैं तो युद्ध की तैयारी कीजिए। यह कहावत स्विट्जरलैंड की है। क्या आप जानते हैं कि स्विट्जरलैंड जैसे छोटे से देश में करीब 4 लाख बंकर हैं। इस देश का दावा है कि 90 लाख की आबादी के लिए 4 लाख के करीब बंकर की व्यवस्था की गई है। हर निवासी को बंकर की गारंटी दी गई है। शीत युद्ध के जमाने से जब युद्ध की आशंका ने यूरोप को घेर लिया तब से स्विट्जरलैंड ने अपनी तैयारी शुरू कर दी। 2022 में जब यूक्रेन और रूस के बीच युद्ध शुरू हुआ तो लोग परेशान हो गए। स्विस अधिकारियों को फोन करने लगे कि मेरा बंकर ठीक है या नहीं। पढ़ने पर पता चलता है कि इस देश में बड़ी संख्या में लोगों के अपने-अपने बंकर हैं। सामुदायिक बंकर भी हैं। यूक्रेन युद्ध के दौरान नागरिकों की चिंता को देखते हुए स्विट्जरलैंड की सरकार पुराने बंकरों में सुधार और नए बंकर बनाने की योजना में लग गई। हर 10 साल में यहां बंकरों का अनिवार्य रूप से परीक्षण किया जाता है। अब आप कहेंगे कि हम स्विट्जरलैंड के बंकर की बात क्यों कर रहे हैं? मॉक ड्रिल तो हो रही है भारत में। भारत के 244 जिलों में तो हम बंकर की बात क्यों कर रहे हैं? युद्ध की आशंका को देखते हुए ऐसी ड्रिल का यही तो मकसद होता है कि आप अपना भी बचाव करें और दूसरे का भी। तो बचाव कैसे करेंगे? जहां सुरक्षित ठिकाना होगा, वहीं तो जाएंगे ताकि बम सीधे कपार पर ना गिर जाए। तो हम बंकर की बात कर रहे हैं क्योंकि सवाल पूछने पर चैनलों को बंद करने, राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर डराने का खेल शुरू हो गया है। आप बीजेपी के सांसद हैं निशिकांत दुबे। किसी चैनल का आपने अपने ट्वीट में नाम नहीं लिया लेकिन संसदीय समिति के अध्यक्ष के नाते एक पत्र सार्वजनिक किया कि हमने लिखा है कि सोशल मीडिया के इन्फ्लुएंसर्स के खिलाफ कारवाई की जानी चाहिए। निशिकांत दुबे ने लिखा है कि इंतजार कीजिए। पहलगाम में हिंदुओं की हत्या के बाद देशद्रोही की तरह हिसाब मांग रहे यूबर व बिचौलियों, सोशल मीडिया नक्षत्रों पर कार्रवाई होगी। कमाल है। सवाल पूछने पर देशद्रोही कहा जा रहा है। सांसद कह रहे हैं। जबकि आप सभी जानते हैं कि गोदी चैनलों ने ही पाकिस्तान से वक्ता बुलाए। जिन्होंने भारत के दर्शकों के बीच भारत विरोधी बातें कही। बीजेपी के सांसद से लेकर सरकार की तरफ से किसी ने नहीं कहा कि इन गोदी चैनलों को बंद कर देना चाहिए क्योंकि इन पर पाकिस्तान से वक्ता बुलाए जा रहे हैं और जो वक्ता भारत विरोधी बातें कर रहे हैं क्योंकि हम जैसे यूर्स सरकार से जरूरी सवाल करते हैं तो दिक्कत होने लगी है। माहौल का बहाना बनाकर डराया जा रहा है और इसका फायदा उठाकर बंद करने का रास्ता निकाला जा रहा है। इसके बाद सरकार समर्थित पत्रकार और समर्थक सोशल मीडिया पर माहौल बनाने लगे और आनंद मनाने लगे कि अब सबको बंद कर दिया जाएगा। बिना किसी प्रमाण के सबको पाकिस्तान परस्त घोषित किया जा रहा है कि अब इनके खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। तो यह सब हो रहा है। लड़ना किससे है? पाकिस्तान से। लेकिन उसके नाम पर जो माहौल बनाया जा रहा है उस हंगामे में निपटाया जा रहा है उन पत्रकारों को जो सवाल करते हैं। सरकार की ताकत के सहारे डराने वालों की सोच कितनी सुंदर है। जवाब नहीं है तो चैनल ही बंद करा दो और पूछने वाले को देशद्रोही करार दो। यह है आज की स्थिति। बहरहाल जब आप मॉक ड्रिल करेंगे तो आपको अपने आसपास के इलाके को बेहतर समझने का मौका भी मिलेगा। आप जान पाएंगे कि कौन सी इमारत सुरक्षित है, कहां छिप सकते हैं।
भारत में मॉक ड्रिल और नागरिक सुरक्षा की नई पहल
अस्पताल में इंतजाम कैसा है वगैरह-वगैरह। सायरन बजते ही युद्ध का रोमांच और उसके विनाश की आशंका दोनों ही आपको घेर लेगी। लेकिन तैयारी तो तैयारी है। करनी पड़ती है। बंकर पर एक ऐतिहासिक फिल्म बनी है डाउनफॉल। जरूर देखिए। 2004 में बनी इस फिल्म में ब्रूनो गैंस ने हिटलर का किरदार निभाया है। यह फिल्म जिस किताब के आधार पर बनी है, उसका नाम है इनसाइड हिटलर्स बंकर। 1945 तक आते-आते जब जर्मनी कमजोर पड़ने लगा तब हिटलर बंकर में छिप जाता है। वो बर्लिन से भागने के बजाय बंकर को ठिकाना बनाता है। उसी बंकर से उसकी सरकार चलती है और उसी बंकर में उसकी लाश मिलती है। फिल्म में दिखाया गया है कि हिटलर अपने आखिरी दिनों में बंकर से ही युद्ध लड़ रहा है। इसी फिल्म के एक सीन को लेकर भारत में भी 2014 से 2016 के बीच सोशल मीडिया पर खूब मीम बने। ओरिजिनल दृश्य तो यह है कि हताश हिटलर अपने जनरलों को खूब डांट रहा है। लेकिन मीम में कुछ बदल दिया गया। डांट पड़ रही होती है गोदी एंकरों को। तो आप यह फिल्म जरूर देखिए और बंकर से लेकर सायरन के बारे में ज्यादा से ज्यादा जानने के लिए हमारा वीडियो भी देख लीजिए। भारत में कहा जा रहा है कि 1971 के बाद पहली बार मॉक ड्रिल इस स्तर पर हो रही है। लेकिन अगस्त 2024 में अजमेर में विषाणु युद्ध का अभ्यास किया गया था कि विषाणु हमले की स्थिति में नेशनल जॉइंट आउटब्रेक रिस्पांस टीम की तैयारी कैसी है? लेकिन एक जिले की बात थी। इस बार 24 जिले की बात हो रही है। उसका नाम रखा गया था विषाणु युद्ध अभ्यास। इस तरह का भारत में यह पहला अभ्यास किया गया ऐसा खबरों में बताया गया है। इसके पहले भी सितंबर 2023 में सेना ने दिल्ली में एंटीसेबोटाज मॉक ड्रिल की तैयारी की थी। इसके तहत जी20 के दौरान किसी आपात हमले की स्थिति से मुकाबला करने का अभ्यास किया गया। यह फोटो बांदीपुरा का है जनवरी 2023 का। सीआईएसएफ की मॉक ड्रिल चल रही है कि अगर हथियारों से हमला हुआ तो जवाब कैसे देंगे? तो सैनिकों, अर्धसैनिक बलों और आपदा प्रबंधन दल की मॉक ड्रिल चलती रहती है। शायद पहली बार 244 जिलों में नागरिकों के लिए मॉक ड्रिल कराई जा रही है। यह तो बचाव का अभ्यास है। किया भी जाना चाहिए। लेकिन हमें तो रिसर्च के दौरान यह भी जानने को मिला कि मई 2024 में चीन ने ताइवान के एयर स्पेस में पनिशमेंट डील की थी। ताइवान के द्वीपों के खिलाफ चीनी सेना के लड़ाकू विमान उड़ाए गए। मकसद यही बताना था कि चीन किसी तरह से ताइवान को दंडित करेगा। तो ड्रिल कई प्रकार की होती है। जापान में भूकंप की ड्रिल साल भर चलती है।स्विट्जरलैंड के स्कूली बच्चों को बताया जाता है कि बंकर में कैसे जाना है, कैसे रहना है, कैसे उसे सील करना है। बंकर में एयर फिल्टर काम कैसे करता है, इन सब की ट्रेनिंग दी जाती है। स्थानीय स्तर पर नगर पालिकाएं भी 3 से 6 महीने में एक बार बंकर ड्रिल्स का आयोजन करती हैं। इससे पहले कि बस छूट जाए। चलिए स्विट्जरलैंड जहां 1963 से ही यह नीति है कि हर नागरिक को बंकर की सुरक्षा मिलनी चाहिए। 1963 के बाद जो भी इमारत बनेगी उसमें बंकर होना चाहिए। इस छोटे से देश ने 90 लाख लोगों को बंकर में रहने की गारंटी दी है और यूक्रेन युद्ध के बाद अपने बंकर सिस्टम को अपग्रेड भी किया। इस देश में हर साल 1 फरवरी को सायरन बजता है और लोगों को बाहर आना पड़ता है। इसे नेशनल सायरन टेस्ट कहते हैं। पूरे देश में 7000 से अधिक सायरन बजाए जाते हैं। इस दिन इसका अभ्यास होता है कि युद्ध परमाणु युद्ध की स्थिति में नागरिकों को क्या करना है? कैसे बचना है?
बंकर को लेकर दोहरा रवैया और सवाल पूछने वालों पर हमले
हर बंकर में वेंटिलेशन सिस्टम होता है। गैस मास्क रखा होता है। दाना पानी भी परमाणु हमले की स्थिति में रेडिएशन से बचाने की बंकरों में व्यवस्था की जाती है। तो हर नागरिक को पता होता है कि किस रास्ते से कितने कम समय में नजदीक के बंकर तक पहुंचना है। बंकर के भीतर कहां क्या रखा है यह भी एक तय व्यवस्था होती है। तो बहुत ही दिलचस्प कहानी है बंकर की। अमेरिका में शीत युद्ध के दौरान 1950 के दशक में एक टर्म प्रचलित हुआ डक एंड कवर। इस नाम से स्कूली बच्चों को ड्रिल की तैयारी कराई गई। इस पर एक एनिमेटेड फिल्म भी बनी जिसे स्कूलों में दिखाया गया। यह उस समय की बात है जब रूस परमाणु बम का परीक्षण कर रहा था। डक का मतलब है किसी चीज के असर से खुद को झुक कर बचाना और कवर का मतलब है किसी चीज के नीचे बचने के लिए छिप जाना। यह वीडियो कॉपीराइट फ्री है। तो हम आपको दिखा भी सकते हैं कि किस तरह से युद्ध के हालात में बच्चों के मन में उससे बचने की कल्पना भरी जाती है और युद्ध को मान्यता दिलाई जाती है। इसका बच्चों पर कितना असर पड़ता होगा यह भी अलग से अध्ययन किया गया है। एक आलोचना भी है इस फिल्म की। युद्ध जैसी स्थिति पर जो एनिमेशन बना है उसमें किरदार नाच गा रहे हैं। 50 के दशक में अमेरिका में इसे लाखों बच्चों को दिखाया गया था। व्हाट डू यू सपोज टू डू व्हेन यू सी द फ्लैश? दूसरे विश्व युद्ध के समय वाइट हाउस के पूर्वी हिस्से में बंकर बना। इसका एक नाम भी है प्रेसिडेंशियल इमरजेंसी ऑपरेशंस सेंटर। क्योंकि द्वितीय विश्व युद्ध के समय हवाई हमलों का खतरा बढ़ गया तो फ्रैंकलिन रुजवेल्ट को हमले से बचाने के लिए बंकर बनाया गया। बाद में राष्ट्रपति हेनरी ट्रूमन ने इसमें काफी विस्तार किया। जब अमेरिका में सितंबर 2001 में आतंकी हमला हुआ तब राष्ट्रपति का पूरा परिवार उपराष्ट्रपति का भी परिवार यहां शिफ्ट हो गया। इसी बंकर से सरकार चलने लगी। यह भी खबर आई थी कि जब जॉर्ज फ्लॉयड की हत्या के विरोध में लोगों ने वाइट हाउस को घेर लिया तब एक घंटे के लिए राष्ट्रपति ट्रंप अपने पहले कार्यकाल में अपनी पत्नी और बेटे के साथ चले गए थे। बाद में ट्रंप ने सफाई दी कि वे बंकर की जांच करने गए थे। 2020 के अप्रैल मई में चीन के साथ गलवान घाटी में इतना बड़ा तनाव हुआ। लेकिन ऐसी ड्रिल के लिए सिटी नहीं बजाई गई। इस बार बजाई जा रही है तो इसे हल्के में नहीं लेना चाहिए। आपने रूस यूक्रेन युद्ध के दौरान कई बार सुना होगा हवाई हमलों की स्थिति में सब बंकर की तरफ भाग रहे हैं। जगह-जगह बंकर बने हैं। इमारतों में बंकर बने हैं तो अलग से भी बंकर बनाए गए हैं। बंकर का युद्ध से ही संबंध है। फिल्मों में आपने देखा होगा बंकर अक्सर सीमावर्ती क्षेत्रों में होते हैं। लेकिन बंकर की जगह अब बदल गई है। यह राष्ट्रीय सुरक्षा का अहम हिस्सा ही नहीं रियलस्टेट बिजनेस का भी एक बड़ा हिस्सा बन गया है। हिंदुस्तान टाइम्स की खबर पहले देखिए 27 अप्रैल की। खबर के अनुसार पहलगाम आतंकी हमले के बाद कुछ जिले के सीमावर्ती गांव में लोगों ने बंकरों की सफाई शुरू कर दी और सामान इकट्ठा करने लगे। यह खबर समाचार एजेंसी एएनआई की है जिसे हिंदुस्तान टाइम्स ने प्रकाशित किया है। इसी खबर में यह भी है कि प्रधानमंत्री मोदी के दूसरे कार्यकाल में नियंत्रण रेखा के पास कई सारे बंकर बनाए गए जिन्हें मोदी बंकर कहा जाता है। यह खबर टाइम्स ऑफ इंडिया में भी है। पीटीआई के हवाले से इंडिया टुडे ने एक और खबर छापी है कि लोग मांग कर रहे हैं कि सीमा पर जो बंकर बनाए जाने थे उनका निर्माण पूरा नहीं हुआ है। इन्हें पूरा किया जाए। इस खबर के अनुसार कुछ बंकर ऐसे भी हैं जो रहने लायक नहीं। तो बंकर को लेकर भारत में आपको दो तरह की खबरें सीमावर्ती इलाकों से मिल जाती हैं। भारत सरकार क्या कर रही है? क्या करेगी इसकी सूचना आधिकारिक रूप से है किसी के पास नहीं। अटकलें हैं। नागरिक सुरक्षा कमेटी की मॉक ड्रिल होगी तो लाखों लोग हिस्सा लेंगे ही। शहर में सायरन बजेगा तो सनसनी फैल ही जाएगी। क्या सरकार युद्ध करेगी?
विश्व युद्धों से लेकर यूक्रेन संघर्ष तक बंकरों की भूमिका
संयुक्त राष्ट्र में प्रधानमंत्री मोदी का ही बयान है कि भारत ने दुनिया को युद्ध नहीं बुद्ध दिया है। युद्ध और बुद्ध को लेकर प्रधानमंत्री मोदी कई बार बयान दे चुके हैं। मगर बुद्ध की बात करने का मतलब यह नहीं कि देश की सुरक्षा से कोई खिलवाड़ करेगा तो जवाब नहीं दिया जाएगा। मोटा-मोटी भारत की यही लाइन है कि वह किसी पर अपनी तरफ से पहले हमला नहीं करेगा। भारत ने चेनाब का पानी बंद किया है। झेलम का पानी भी बंद करने पर विचार हो रहा है। ऐसी खबरें चल रही हैं। यह भी थ्योरी चलाई जा रही है कि पाकिस्तान की तरफ से इन बातों का जवाबी हमला हो सकता है। तो, हम बात कर रहे हैं बंकर की। अमेरिका की रियलस्टेट कंपनी सेफ की वेबसाइट पर गए। 50 साल से यह कंपनी सुरक्षा और लग्जरी दोनों काम करती है। आपके घर को किले की तरह बना देती है और अलग से आपके लिए बंकर भी बना देती है। अमेरिका में लग्जरी बंकर अमीरों के जीवन का हिस्सा बन चुका है। अमीरों ने तो अपने लिए ऐसे ऐसे बंकर बना लिए हैं जिसके भीतर अस्पताल से लेकर खेलने के मैदान भी हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति के लिए वाइट हाउस में ही बंकर है। तो वहां के अमीर चाहते हैं कि जिस तरह की सुरक्षा वाइट हाउस के बंकर की है वैसी ही उन्हें मिल जाए। एक से $ मिलियन डॉलर तक के बंकर बिक रहे हैं अमेरिका में। युद्ध अमीरों के लिए कुछ और होता है और गरीबों के लिए कुछ और। अमीरों ने तो अपने लिए न्यूजीलैंड को ही बंकर समझ लिया है। यहां पर अमीरों ने अपने घर बनाए हैं, बंकर बनाए हैं क्योंकि माना जाता है कि जब सारे महाद्वीपों में तबाही आएगी तब शायद न्यूजीलैंड बच जाएगा। इसी से जुड़ी एक कहानी बताता हूं। अमेरिका की एक कंपनी है पेपल। इसके सीईओ हैं पीटर थी। यह न्यूजीलैंड में बंकर जैसी सुरक्षित इमारत बनाना चाहते थे। लेकिन उन्हें अनुमति नहीं मिली। यह सूचना उन लोगों के लिए है जो टीवी के सामने युद्ध का तमाशा देखने बैठे हैं। उन्हें बताने के लिए है कि अमीरों ने अपना इंतजाम कर लिया है। क्या आपका इंतजाम हुआ है? पूछ लीजिए। मॉक ड्रिल के बहाने हमने सोचा कि बंकर को लेकर बात करते हैं। चलते हैं कुछ इतिहास में, कुछ वर्तमान में। वैसे मुझे कहां कुछ आता है। इन किताबों में बंकर से जुड़े वास्तु शास्त्र, मनोविज्ञान, संस्कृति का विश्लेषण किया गया है।
रियल एस्टेट में बंकर: अब सुरक्षा भी है स्टेटस सिंबल
प्रथम और दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बने बंकरों पर बहुत सारी किताबें दिख गई। उसके बाद परमाणु हमले से बचने के लिए भी बंकर बनाए जाने लगे और फिर रईसों ने अपने लिए बंकर बनाए। उसके बाद बंकर बनाने की संस्कृति कॉर्पोरेट संस्कृति से जुड़ती है। जब कंपनियां अपने लिए बंकर बनाती हैं, तो इनकी डिजाइन को लेकर भी गहरा अध्ययन है। बंकर हमारे भीतर के भय को कैसे परिभाषित करता है इसका भी विश्लेषण है। ऐतिहासिक अध्ययनों के साथ बंकर के ऊपर साहित्य भी लिखा गया है। उत्तर कोरिया में इतने बंकर हैं कि उसे बंकर सोसाइटी कहा जाता है। ब्रैटली गैरेट ने लिखा है कि 1950 के कोरियन युद्ध के समय उत्तर कोरिया की ज्यादातर इमारतें ध्वस्त हो गई। उसके बाद उत्तर कोरिया ने बंकर में खूब निवेश किया। पहाड़ियों में भी बंकर बना दिए। एक किताब है कोल्ड वॉर स्पेस एंड कल्चर इन द 1960 एंड 1980 द बंकर डेकेड्स। इस किताब में बंकर फेंटसी की बात की गई है। बताया गया है कि कैसे शीत युद्ध के दौरान फिल्मों में, कहानियों में, कॉमिक्स में बंकर का उभार होने लगता है। बंकर के अंदर भी वर्गों और नस्लों के आधार पर विभाजन होने लगता है। इन सब की चर्चा डेविड अल्पाइट ने अपनी किताब बंकर डेकेड्स में की है। देश पर हमले के जवाब में नागरिकों की सुरक्षा के लिए बंकर बनाए जाते हैं। लेकिन बंकर के भीतर वह एकता कहां नजर आती है? अमीरों ने गरीबों से दूरी बनाने के लिए अपने लिए बंकर बना लिए। जैसे सब नष्ट हो जाए लेकिन अमीर बचे रह जाए। बंकर के भीतर वर्गों के आधार पर विभाजन भी दिखा। आप बंकर को केवल इस नजर से मत देखिएगा कि राष्ट्र पर हमला हो रहा है। तो सब की सुरक्षा की एक गारंटी मिल रही है। अलग-अलग देश में इसकी गारंटी का मतलब बदल जाता है। अमीरों के लिए अलग हो जाता है। गरीबों के लिए अलग। केवल युद्ध समाज को नहीं बदलता। युद्ध की कल्पना युद्ध से पहले ही समाज को बदल देती है। बंकर एक तरह का बिल है जो सांप बिच्छू की जगह मानी जाती है। इंसान ने अपनी बहादुरी दिखाने के लिए युद्ध के ऐसे ऐसे उपकरण बना लिए कि उसी से बचने के लिए सांपों और बिच्छुओं की कल्पना से चुराकर बंकर को बिल की तरह बनाना पड़ गया।