4PM चैनल बंद: क्या सरकार से सवाल पूछना अब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है?

 4PM चैनल बंद: क्या सरकार से सवाल पूछना अब राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है?

पहलगाम में आतंकी हमले का आज सातवां दिन है और सुबह-सुबह खबर आती है कि नेशनल चैनल 4 पी.m. बंद कर दिया गया। YouTube की दुनिया में 4 पी.m. एक बड़ा चैनल है। इसके 7 मिलियन से भी ज्यादा सब्सक्राइबर्स हैं। चैनल के संपादक संजय शर्मा के अनुसार उन्हें कारण नहीं बताया गया। लेकिन इस चैनल ने क्या ऐसी गलती की होगी कि राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा हो गया? प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह की आलोचना ही की होगी। सवाल ही किया होगा कि सुरक्षा में चूक कैसे हो गई? शहला रशीद ने तो सेना पर टॉर्चर का आरोप लगाते हुए ट्वीट कर दिया था। तब मोदी सरकार ने देशद्रोह का मामला दर्ज कर लिया। अब स्थितियां बदल गई तो मुकदमा वापस ले लिया गया। लेकिन नेहा सिंह राठौर और माधुरी काकोटी ने सरकार से सवाल पूछ लिया तो एफआईआर कर दी गई है। इसी वीडियो में आगे हम इसकी बात करेंगे। उम्मीद है आप इस वीडियो को पूरा देखेंगे। 4 PM के संपादक संजय शर्मा ने एक्स पर सुबह-सुबह जानकारी दी कि हमारा नेशनल चैनल 4 पीm सरकार ने बंद करवा दिया है। नेशनल सिक्योरिटी का बहाना बनाकर लोकतंत्र की एक मजबूत आवाज को कुचलने की कोशिश की गई है। मैं देश से उतना ही नहीं उससे कहीं ज्यादा प्यार करता हूं जितना यह सरकार दावा करती है। अगर किसी वीडियो पर सरकार को आपत्ति थी तो एक मेल भेजकर बताया जा सकता था। मैं खुद जांचता और अगर गलती होती तो उसे हटा देता। लेकिन सच यह है कि मोदी देश नहीं है। सरकार से सवाल पूछना गुनाह नहीं है। लोकतंत्र में आवाज उठाना हमारा अधिकार है। तानाशाही से डरने वाले नहीं है हम। हम 4 पी.m. यूपी और बाकी सभी 4 पी.m. राज्य चैनलों पर अपनी आवाज बुलंद करते रहेंगे। आपसे अनुरोध है कि उन चैनलों को तुरंत सब्सक्राइब करें और इस संघर्ष में हमारा साथ दें। चैनल बंद हो सकता है पर हमारी आवाज नहीं चाहे YouTube हो या कोई और मंच हम लोकतंत्र की मशाल जलाते रहेंगे तो क्या अब यही सब होगा कि जो सवाल करेगा उसका चैनल बंद कर दिया जाएगा एफआईआर कर दी जाएगी 4 पीm का संबंध लखनऊ से है और इसी शहर में दो और एफआईआर हुई है। लोक गायिका नेहा सिंह राठौर ने ऐसा क्या कह दिया कि उनके खिलाफ एफआईआर हो गई। लखनऊ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर माधुरी काकोटी ने ऐसा कौन सा सवाल पूछ दिया कि उनके खिलाफ एफआईआर हुई है? 4 पी.m. के कई थंबनेल पर आपत्तियां जताई जा रही हैं। वह भी आधिकारिक तौर पर नहीं बल्कि सोशल मीडिया में अफवाह के रूप में। अगर थंबनेल के कार बंद किया गया है तो संपादक संजय शर्मा को बताना चाहिए। बिना कारण बताए क्यों बंद किया गया? वैसे भी जब कारण आधिकारिक रूप से नहीं बताया गया है तो थंबनेल को कारण की तरह क्यों घुमाया जा रहा है? थंबनेल को लेकर अलग-अलग पैमाना होता है। 



4PM चैनल पर कार्रवाई: इमरजेंसी की वापसी?

 लेकिन उसकी भी व्याख्या इसी तरह से की जा सकती है जैसे 4 पी.m. की की जा रही है। थंबनेल को लेकर YouTube की अपनी गाइडलाइन है कि मिसलीडिंग नहीं होनी चाहिए। अगर ऐसा है तो शिकायत YouTube से की जानी चाहिए। इसका मतलब यह नहीं कि सरकार घुस जाए और चैनल को बंद कर दे। थंबनेल कारण है तो इस आधार पर सारे गोदी चैनल 1 घंटे के भीतर बंद हो जाने चाहिए। आपको याद दिलाना चाहता हूं कि रूस और यूक्रेन की जंग के दौरान गोदी चैनल सनक गए। आप जाकर देखिए किस तरह के थंबनेल लगाए जा रहे थे। कभी तीसरा विश्व युद्ध, कभी परमाणु बटन दबाने के थंबनेल लगते थे। इस तरह के कार्यक्रम बनते जैसे रिपोर्टर और संपादक पुतिन के कमरे में बैठा हो। यही नहीं 2022 में जहांगीरपुरी में तनाव को लेकर अनापशनाब खबरें चलने लगी। तब अप्रैल 2022 में सरकार को एक एडवाइज़री जारी करनी पड़ी। सरकार ने किसी गोदी चैनल को इसके लिए बंद नहीं किया। इस देश में कितने ही गोदी एंकर नफरत फैलाते हैं। झूठ बोलने के आरोप में दोषी तक पाए गए। जुर्माना लगा वह आज तक एंकरिंग कर रहे हैं। यही नहीं हेट स्पीच पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने नफरती एंकरों पर कितनी सख्त टिप्पणी की। कोर्ट ने पूछा कि आपने कितनी बार ऐसे एंकरों को एंकरिंग से हटाया है जो किसी को बोलने नहीं देते। नफरती बातें बोलते रहते हैं। सोशल मीडिया में 4 पी.m. के खिलाफ अफवाहें चलाने से नहीं होगा। अगर कोई आपत्ति है तो ऑन रिकॉर्ड लाना चाहिए। थंबनेल से आपत्ति जता सकते हैं, लेकिन थंबनेल चैनल बंद करने का कारण नहीं हो सकता। यह एक बहाना है। गोदी चैनलों पर एंकर नफरत फैला रहे हैं। उनके खिलाफ कोई कार्रवाई नहीं की जाती। हजारों उदाहरण हैं। पाकिस्तानी मेहमान आकर सेनाध्यक्ष का अपमान कर रहे हैं। भारत के सेना अध्यक्ष का बीजेपी के प्रवक्ता भी उसी फ्रेम में बैठे हुए हैं। क्या वह पत्रकारिता है? उससे सरकार को आपत्ति नहीं। रवश कुमार ऑफिशियल पर ही जाकर देखिए। वीडियो के कमेंट में कितनी भयानक गालियां दी जाती हैं, धमकियां दी जाती हैं। पढ़कर किसी के भी मानसिक स्वास्थ्य पर असर पड़ सकता है। इन गाली देने वालों को तो किसी ने नहीं कहा कि मां-बहन की गाली देने वाले एक लोकतांत्रिक समाज की सुरक्षा के लिए खतरा हैं। क्या देश यह चाहता है कि केवल गाली देने वाले झूठ बोलने वाले ही रहें? इन्हें चुनौती देने वालों का मुंह बंद कर दिया जाए? रोजगार इनसे छीन लिया जाए। अगर इस तरह से YouTube चैनल बंद किए जाएंगे तब तो फिर आम आदमी डरपोक हो जाएगा। कितनी मुश्किल से इस देश की जनता 200 साल की गुलामी से निकली है। कितने लोगों ने उसे निकालने के लिए कुर्बानी दी? क्या बोलने की उस आजादी पर इस तरह से हमला किया जाएगा? 

क्या अब मीडिया को चुप रहना पड़ेगा?

YouTube चैनलों को बंद करने का सपना पुराना है। अजीत अंजुम, अभिसार शर्मा या न्यूज़ ल्ड्री या वायर सब हाड़तोड़ मेहनत करते हैं। सरकार से सवाल करते हैं। अजीत अंजुम की ग्राउंड रिपोर्ट देखिए। हमने ना सिर्फ गोदी मीडिया के वर्चस्व को चुनौती दी। उसके झूठ को चुनौती दी बल्कि छोटे से दायरे में कुछ लोगों को अच्छी सैलरी की नौकरी भी दी है। वो सरकार अगर राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर इन चैनलों को बंद करा रही है। बंद कर देने का तलवार लटकाए रखना चाहती है। उस सरकार की आत्मा लगता है बदल गई है। उस सरकार के मुखिया भले कहते हो कि आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है। लेकिन इस आत्मा को जिंदा कौन रखे हुए हैं? गोदी मीडिया नहीं हमारे जैसे चैनल और पत्रकार इतने बड़े देश में गिनती के 25-50 ही ऐसे पत्रकार रह गए हैं। हाउसिंग सोसाइटी के अंकलों के पास अब कोई जवाब बचा नहीं है। भीड़ के दम पर सवालों को दबा रहे हैं। हर दिन समर्थक झूठ के आगे हार रहे हैं। बौखला गए हैं कि इन चंद लोगों की वजह से हमारा झूठ अब सोसाइटी में भी चल नहीं पा रहा। जनता को सच दिखने लगा है। घंटों मेहनत से तैयार किए गए हमारे वीडियो से सरकार और उसके समर्थकों में हताशा पैदा होने लगी है। उनका आत्मविश्वास कमजोर पड़ रहा है। अब उनके पास एक ही रास्ता है कि इन चैनलों को किसी भी तरह से बंद करवा दिया जाए। इस तरह से आर्थिक प्रतिबंधों के घेरे में हम सब जी रहे हैं। किस बात के लिए कि हम सही सवाल कर देते हैं। जनता ने गोदी चैनलों को नकार दिया है। जनता देखना नहीं चाहती है। उनके झूठ को नकार दिया पब्लिक ने तो सरकार को दिक्कत हो रही होगी। राष्ट्रीय सुरक्षा के नाम पर हम चैनलों को बंद करने का अवसर खोजती होगी। हर दिन हम यूबर पर तलवार लटकी रहती है। हमें भी फोन आ रहे हैं। क्या आपका भी बंद हो गया? और फोन करने वाले शुभचिंतक इस बात के साथ फोन रख देते हैं। आपका तो सरकार जरूर बंद करेगी। सभी को पता है इस देश में गिनती के पत्रकार रह गए हैं जो पत्रकारिता करते हैं। बाकी जिन्हें झूठ फैलाना है, अफवाह फैलानी है, नफरत के बीज बोने हैं उन्हें पूरी छूट है। तो दिक्कत उन चैनलों से है जहां सरकार से लगातार सवाल किया जाता है। क्या यह शर्मनाक स्थिति नहीं है कि हम कहीं से भी जीने के लिए कमा ना सके इसका इंतजाम किया जा रहा है। पेट पर लात मारी जा रही है? क्या किसी को भी इस बात से इस देश में फर्क नहीं पड़ता? हर दिन का हमारा सवाल है कि आज कहीं बंद तो नहीं हो जाएगा। इस देश में करोड़ों रुपए लूट कर लोग भाग जाते हैं।रोज लूटने वाले आराम से नेतागिरी कर रहे हैं। ब्लैक मनी से कश्मीर में पार्टी मना रहे हैं। लेकिन हमें इस आशंका में जीना पड़ता है कि चैनल कहीं बंद ना हो जाए। आपकी जिम्मेदारी और बढ़ जाती है। आप खोजखोज कर नए चैनल तक पहुंचने की कोशिश कीजिएगा। अगर सरकार को सवाल से इतनी दिक्कत है तो सरकार तुरंत एक काम करें। 

सरकार से सवाल पूछना राष्ट्रद्रोह कैसे बन गया?

संसद का विशेष सत्र बुलाए और एक कानून बना दे कि सरकार से सवाल करना राष्ट्रीय सुरक्षा का सबसे बड़ा खतरा माना जाएगा। स्कूल के प्रश्न पत्रों से लेकर संसद में पूछे जाने वाले प्रश्नों के अंत में लगने वाले प्रश्नवाचक चिन्ह इंग्लिश में क्वेश्चन मार्क को भी भारत में इस्तेमाल करने पर पाबंदी लगा दी जाए। भारत में सरकार के लिए क्वेश्चन मार्क का इस्तेमाल करना गुनाह माना जाएगा और यह बात अब कोई याद नहीं दिलाएगा कि आलोचना लोकतंत्र की आत्मा है। ऐसी बात कहने वाले प्रधानमंत्री की आलोचना करने पर आपकी रोजी रोटी छीनी जा सकती है। आपकी आत्मा परमात्मा के पास भेजी जा सकती है। भूखे मर जाएंगे। कोई नौकरी नहीं देगा। अपना रोजगार करेंगे तो सवाल पूछने के नाम पर आपका रोजगार बंद कर दिया जाएगा। 4 पीएम के संपादक संजय शर्मा ने कहा उन्हें कारण नहीं बताया गया कि ऐस क्या गलती की जिससे राष्ट्रीय सुरक्षा को खतरा पहुंचा? अगर बताया जाता तो सुधार कर देते। जिस वीडियो से दिक्कत थी आप उस वीडियो को हटाते। एक वीडियो को पूरे चैनल को क्यों बंद किया? इसका मतलब है सरकार का इरादा कुछ और है। अगर आप मोदी सरकार का इतिहास देखेंगे तो उसे लगता है कि कारण बताने की क्या जरूरत है? जब आतंकी हमले पर जवाब नहीं दे रहे तो एक चैनल को क्यों बंद किया? इसका कारण बताएंगे। राष्ट्रीय सुरक्षा का नाम लेकर गृह मंत्रालय ने इसी तरह केरला के एक चैनल मीडिया वन को साल भर से ज्यादा समय तक के लिए बंद कर दिया। कारण भी नहीं बताया। बस बंद कर दिया। मीडिया वन को पता ही नहीं चला कि उसके खिलाफ आरोप क्या है? उसका अपराध क्या है? हाईकोर्ट में सरकार ने बंद लिफाफे में जवाब दिया और कोर्ट ने मान लिया लेकिन चैनल को कुछ पता नहीं चला आरोप क्या है? जनवरी 2022 में चैनल पर बैन लगा था। डेढ़ साल तक केस मुकदमा और सुनवाई का दौर चला। सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। तब जाकर टीवी पर प्रसारण का अधिकार मिला। मगर जब फैसला आया तब सुप्रीम कोर्ट में सूचना प्रसारण मंत्रालय की तमाम दलीलें ध्वस्त हो गई थी। अप्रैल 2023 में फैसला सुनाते हुए जस्टिस डीवाई चंद्रचूर और जस्टिस हीमा कोहली ने चैनल पर प्रतिबंध को हटाते हुए सूचना प्रसारण मंत्रालय को 4 हफ्ते का समय दिया कि मीडिया वन का लाइसेंस का नवीनीकरण हो जाना चाहिए। उन्होंने सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का इस्तेमाल कर रहा है। यह कानून के राज की भावना के खिलाफ है। राष्ट्रीय सुरक्षा का मामला भर हो जाने का मतलब यह नहीं कि राज्य बराबरी और तटस्थता से काम नहीं करेगा। बंद लिफाफे की प्रक्रिया अपनाने से याचिकाकर्ता के अधिकार का हनन होता है। राज्य नागरिकों के अधिकारों को कुचलने के लिए राष्ट्रीय सुरक्षा का इस्तेमाल कर रहा है। अपने फैसले में बैन को रद्द करते हुए सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने कहा सरकार हवा में राष्ट्रीय सुरक्षा के आरोप नहीं लगा सकती। इसके लिए ठोस कारण होने चाहिए। जिस तरह से मीडिया वन के लाइसेंस का नवीनीकरण रोका गया उसका मीडिया की स्वतंत्रता पर चिलिंग इफेक्ट यानी हार कपा देने वाला असर होगा। इतना डरावना अगर सरकार को लगता है कि राष्ट्रीय सुरक्षा को क्षति पहुंच रही है। उस स्थिति में भी सरकार को निष्पक्ष रूप से कारवाई करनी होगी। अगर सरकार सुरक्षा के नाम पर बैन करती है तो उसे अदालत के सामने अपनी कारवाई को साबित करना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आप हवा में किसी के खिलाफ राष्ट्रीय सुरक्षा के आरोप नहीं लगा सकते तो सरकार ने 4 पी.m. को बंद करते समय कारण क्यों नहीं बताया? सरकार को पता है अदालत में साबित करने से पहले मुकदमा चलने के नाम पर ही कई साल गुजर जाएंगे। 

लोकतंत्र बनाम सत्ता: 4PM केस का संदेश क्या है?

ऐसे आदेशों से सरकार को अब कोई फर्क नहीं पड़ता। यही एक मामला नहीं है। तब भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता से लेकर चैनलों को बंद करने, पत्रकारों के खिलाफ मामला दर्ज करने की प्रक्रिया दोहराई जात रही है। इसी तरह न्यूज़ क्लिक पर छापा पड़ गया और इसके संस्थापक संपादक प्रवीर पुरकायस को अवैध तरीके से गिरफ्तार कर लिया गया। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उनकी गिरफ्तारी अवैध थी। उन्हें 7 महीने के बाद रिहा तो किया गया लेकिन न्यूज़ क्लिक फिर से खड़ा नहीं हो सका। उसके कर्मचारियों की नौकरियां चली गई। फर्जी आरोपों के कारण एक मीडिया वेबसाइट हमेशा के लिए खत्म हो गई। इस देश की राजधानी दिल्ली में एक संपादक को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया। आप यह सब क्यों भूल जाते हैं? सरकार युवाओं को नौकरी नहीं दे पा रही। लेकिन जो लोग अपने दम पर छोटा-मोटा चैनल बनाकर कुछ लोगों के लिए रोजगार का सृजन करते हैं, उसे भी बंद करने के तरीके निकाल लाती है। क्या धमकी और बंद हो जाने के डर के बीच कोई अपना चैनल चला सकता है? किसी को नौकरी दे सकता है। बहुत ज्यादा पुरानी बात नहीं। आज से एक साल पहले मार्च 2024 में प्रधानमंत्री मोदी ने एक भव्य कार्यक्रम में देश भर के इन्फ्लुएंसर्स को नेशनल क्रिएटर अवार्ड से पुरस्कृत किया। खुद प्रधानमंत्री मोदी अपने YouTube चैनल का प्रचार प्रसार कर चुके हैं। लोगों से बेल आइकॉन क्लिक करने और सब्सक्राइब करने को कह चुके हैं। अपने यूबर भी कहा। क्या उनकी सरकार एक ऐसा YouTube स्पेस बनाना चाहती है जहां किसी भी क्रिएटर के लिए अपने चैनल की सुरक्षा की कोई गारंटी ना हो जहां कभी भी कोई भी उसके वर्षों की मेहनत पर एक झटके में पानी फेर दे बेरोजगार कर दे चैनल बंद कर दे क्या मोदी सरकार YouTube को ऐसे स्पेस में बदलना चाहती है जहां कोई उनसे सवाल ना करे YouTube भी गोदी मीडिया हो जाए जब बिना कारण बताए आए। इतनी आसानी से अगर किसी का चैनल बंद किया जा सकता है, फिर ब्रॉडकास्ट बिल और अन्य नियमों की क्या जरूरत है? क्या सरकार को पता नहीं कि अभिव्यक्ति का स्वतंत्रता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस को क्या फटकार लगाई है? ज्यादा पुरानी खबर नहीं इसी 3 मार्च की है। कांग्रेस सांसद इमरान प्रतापगढ़ी ने एक कविता ही सोशल मीडिया पर पोस्ट की थी और उनके खिलाफ एफआईआर हो गई। यह बार एंड बेंच की हेडलाइन है। पुलिस को संविधान के 75 साल बाद भी अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को समझना चाहिए। कोर्ट ने कुछ इस तरह से कहा था संविधान को लागू हुए 75 साल हो गए। अब तो पुलिस को समझ में आ जाना चाहिए। तब वकील कपिल सिब्बल ने भी एक टिप्पणी की थी। यह बात कोर्ट को भी समझनी होगी। कितनी महत्वपूर्ण बात है। सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस एएसओ का और जस्टिस उज्जल भुयान की खंडपीठ की इस टिप्पणी से फिर क्या ही बदला। पुलिस अगर बोलने पर लिखने पर एफआईआर करने लग जाए तो फिर इमरान प्रतापगढ़ी मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को किस तरह सहारा देता है? इस फैसले के बाद भी लोकतंत्र में कमजोर लोगों की आवाज उठाने वाले सरकार से सवाल पूछने वाले बेसहारा हो गए हैं। इस केस में गुजरात सरकार की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने तर्क दिया सोशल मीडिया एक खतरनाक उपकरण है और लोगों को जिम्मेदारी से काम करना चाहिए तो सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस ओका ने कहा यह समस्या है। अब किसी के मन में रचनात्मकता के लिए कोई सम्मान नहीं है। अगर आप इसे सीधे तौर पर पढ़ें तो इसमें यही कहा गया है अगर आप अन्याय सहते हैं तो भी उसे प्यार से सहें। अगर न्याय की लड़ाई का सामना अन्याय से होता है तब भी हम उसका सामना प्यार से करेंगे। आपने सुना कविता की इस पंक्ति को। आप भी बताइए क्या ऐसी पंक्तियों के बोलने से, पोस्ट करने से एफआईआर होनी चाहिए थी? हाई कोर्ट से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक का कितना वक्त बर्बाद किया गया? लोक गायिका नेहा सिंह राठौर कविता लिखती हैं। गाने लिखती हैं, गाना गाती हैं। भोजपुरी में बहुत लोकप्रिय हैं। उनका गाना चारों तरफ सुना जाता है। पाकिस्तान में उनका गाना वायरल हो गया। तो क्या यह उनसे अपराध हो गया? गोदी चैनलों पर पाकिस्तान से वक्ता बुलाए जा रहे हैं। अनापशनाप बोल रहे हैं। 

पत्रकारिता पर ताला: अगला नंबर किसका?

भारत के बारे में भी और भारत के प्रधानमंत्री के बारे में भी। लेकिन उन्हें तो किसी ने नहीं रोका। उन चैनलों को किसी ने बंद नहीं किया। पाकिस्तानी आकर भारत के चैनलों पर कुछ भी बोल सकते हैं। लेकिन नेहा सिंह राठौर बोलेंगी गाएंगी तो एफआईआर होगी। आपको एक खबर की याद दिलाना चाहता हूं। यह खबर भी उसी समय की है जब सुप्रीम कोर्ट ने इमरान प्रतापगढ़ी के केस में टिप्पणी की थी। शहला राशिद शोरा के खिलाफ पुलिस ने देशद्रोह का मामला दर्ज किया। शहला जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष रह चुकी हैं। पुलिस ने उनके खिलाफ दो समुदायों के बीच शत्रुता फैलाने, देशद्रोह सेना के खिलाफ प्रतिकूल टिप्पणी करने के आरोपों में कई धाराएं दर्ज कर दी। 2019 में यह सब केस दर्ज हुआ। इसी 2 मार्च 2025 को पुलिस ने केस वापस ले लिया। अभियोजन पक्ष ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली के उपराज्यपाल ने मुकदमा चलाने की अनुमति वापस ले ली है। उस समय शहला रशीद ने अमेरिकी सेनेटर बर्नी सेंडर्स ब्रिटेन के तत्कालीन नेता प्रतिपक्ष जर्मी कॉरबिन से लेकर न्यूजीलैंड की तत्कालीन प्रधानमंत्री जसिंडा आर्डन कनाडा के तत्कालीन प्रधानमंत्री जस्टिन ट्रूडो को अपना ट्वीट टैग कर दिया था कि कश्मीरी जनता के साथ क्या हो रहा है बताने के लिए। क्या अब इन तस्वीरों को देखकर आप यकीन कर पाएंगे कि कभी इन्हीं नेताओं की सरकार की पुलिस ने शहला रशीद पर देशद्रोह का मुकदमा किया था और अब उसे वापस ले लिया गया है। जब शहला जेएनयू छात्र संघ की उपाध्यक्ष थी तब उन्हें लगातार घेरा जाता था। अगस्त 2019 में शहला रशीद ने तो भारत की सेना पर टॉर्चर तक के आरोप लगा दिए। लेकिन अब सरकार ने केस वापस क्यों लिया? तस्वीरें ही जवाब दे सकती हैं कि शहला रशीद के खिलाफ केस क्यों वापस हुआ? 5 साल पुलिस से लेकर कोर्ट का समय क्यों खराब किया गया? नेहा सिंह राठौर का वीडियो पाकिस्तान में वायरल हुआ तो गंभीर धाराओं में यहां एफआईआर। यहां शहला रशीद तो दूसरे देशों के सांसदों को कश्मीर के सवाल पर टैग कर रही थी, लिख रही थी। सेना पर गंभीर आरोप लगा रही थी। नेहा का गाना ही तो वायरल हुआ। उससे दिक्कत हो गई या भारत की जनता में वायरल होने लगा नेहा सिंह राठौर का गाना उससे दिक्कत हो गई। पूरी भाजपा के नेताओं के जितने बच्चे फौज में होंगे उससे ज्यादा तो मेरे अपने रिश्तेदार और परिवार के लोग सेना में जान दांव पर लगा चुके हैं। अरे आज मैं कहूंगी कि देश का मेन स्ट्रीम मीडिया देश का गद्दार है। क्योंकि उसने कभी सरकार से सवाल नहीं पूछा और सरकार को मनमानी करने दी। वो पूछे या ना पूछें। मैं बार-बार पूछूंगी कि पहलगाम में 2000 सैलानियों के लिए सुरक्षा की व्यवस्था क्यों नहीं थी? कौन जिम्मेदार है इसका? आतंकी हमले के बाद बिहार में रैली करना इतना जरूरी था। भाजपा का आईटी सेल देश का गद्दार है क्योंकि उसने देश को हिंदू मुसलमान में बांटने की कोशिश की। है कोई जवाब? देशद्रोही कहेंगे यह मुझे। नए-नए अपराध खोजे जा रहे हैं एफआईआर करने के लिए। क्या आपको याद नहीं कि पाकिस्तान की एक महिला का वीडियो 2017 में भारत में वायरल हो गया जिसमें वो महिला पाकिस्तान की सरकार की गालियां देकर आलोचना कर रही थी। तब तो सबको बहुत आनंद आया। यहां का वहां वहां का यहां वीडियो वायरल होता रहता है। क्या एफआईआर की जाएगी? नेहा के साथ-साथ लखनऊ यूनिवर्सिटी की प्रोफेसर माधुरी काकोटी के खिलाफ भी एफआईआर हुई है। माधुरी ने भी सवाल ही किया कि चूक कैसे हो गई? सोशल मीडिया पर माधुरी काकोटी डॉक्टर मेडूसा के नाम पर लोकप्रिय हैं। वे अंग्रेजी के शब्दों का मतलब सिखाती हैं और अलग अंदाज में सरकार से सवाल करती हैं। नफरती घटनाओं पर टिप्पणी करती हैं। युवाओं को दंगाई बनने से बचाती हैं। उन्होंने कह दिया कि आतंकवादी ने धर्म पूछकर मारा है। लेकिन धर्म पूछकर दिनरा जो नफरत फैलाई जाती है। ऐसा करने वाले कौन हैं? तो उनके खिलाफ एफआईआर हो गई। एक नहीं कई धाराएं लगाई गई हैं। छह धाराएं भारतीय न्याय संहिता की लगी हैं और एक धारा सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम की धारा 69 ए लगा दी गई है। माधुरी काकोटी के सवाल से देश की संप्रभुता और अखंडता को खतरा कैसे पहुंच सकता है? समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव ने अपनी प्रेस कॉन्फ्रेंस में नेहा सिंह राठौर का बयान चलाया और उनके खिलाफ मामला दर्ज होने की निंदा की। राजनीतिक दल सवाल नहीं करेंगे तो और क्या करेंगे? सरकार ने तो आधिकारिक तौर पर कुछ बताया नहीं कि वही दोहराते रहें। तो क्या विरोधी दल के नेताओं का सवाल करना अपराध है? अखिलेश यादव ने भी तो आज सवाल कर पूछा है कि पूछता है पहलगाम का पर्यटक। खबरों के बीच मेरी रक्षा करने वाला कोई वहां क्यों नहीं था? कुछ ऐसे लोगों को सरकार की ओर से चारों तरफ से चाक चौबंद सुरक्षा घेरा क्यों दिया जाता है? जो बाद में ठग साबित होते हैं। कोई भी कुछ बनकर इतने संवेदनशील इलाके में सुरक्षा कैसे पा सकता है? क्या पहले कोई जांच पड़ताल नहीं होती है? जश्नजीवी भाजपाई जब यहां विवादित निजी कार्यक्रम आयोजित करते हैं तो लगभग 250 वीवीआईपी के लिए हजारों सुरक्षा कर्मियों के कई घेरे बना दिए जाते हैं। वो भी उनके निजी कार्यक्रम में जिनका काम किसी और के शब्दों को स्वर देना है। जिनका स्वयं कोई अस्तित्व नहीं जो न्यायालय तक की अवमानना करते हैं। ऐसे लोगों को सुरक्षा किस आधार पर मिलती है और पर्यटकों को क्यों नहीं मिलती? यह अति गंभीर प्रश्न है जिन्होंने अपनों को खोया है उन पर दबाव डालकर बयान भले बदलवा दिए जाएं लेकिन भाजपाई याद रखें बयान बदलवाने से सच नहीं बदल जाता है तो क्या यह सच नहीं कि धर्म पूछकर नफरत फैलाई जा रही थी इस वक्त जब एकजुटता ही एकमात्र नारा है तो कौन लोग हैं और किस पार्टी के हैं जो गरीब ठेले वालों का ठेला पलट देते हैं मजहब पूछ रहे हैं मुंबई में बीजेपी के नौ कार्यकर्ताओं के खिलाफ एफआईआर हुई है इन इन पर आरोप है कि दादर में मुस्लिम हॉकर शाहिद अली के साथ गाली गलौज की गई, मारपीट की गई। क्या आप जानते हैं कि पुलिस से शिकायत किसने की? सौरभ मिश्रा ने रिपोर्ट के अनुसार सौरभ ने अपनी शिकायत में लिखाया है कि शाहिद अली उसके साथ काम करता है। तेंदुलकर और आठ साथी आए और शाहिद से धर्म पूछकर मारने लगे। इस वक्त सौरभ मिश्रा जैसे लोग हैं जो धर्म पूछकर एकता को चोट पहुंचाने वाले नफरती लोगों के खिलाफ बोल रहे हैं। पुलिस में जाकर शिकायत करने का रिस्क ले रहे हैं कि शाहिद अली को धर्म पूछकर मारा गया। जो काम सौरभ मिश्रा जैसे शानदार और जिम्मेदार नागरिकों ने किया है वही काम माधुरी काकोटी और लोक गायिका नेहा सिंह राठौर जैसी शानदार नागरिक ने किया है। बिना झूठ को किनारे लगाए आप देश की सेवा नहीं कर सकते। इसलिए सवाल पूछा जा रहा है और यह भी दोहराया जा रहा है कि हम सरकार के साथ हैं। सरकार जो भी कारवाई करेगी उसके साथ हैं। फिर सवाल का जवाब क्यों नहीं दिया जा रहा? 

4PM चैनल बंद: यह सिर्फ एक शुरुआत है?



और सवाल सिर्फ माधुरी और नेहा नहीं पूछ रही हैं। पहलगाम में मारे गए शैलेश कलथिया की पत्नी शीतलब बेन भी पूछ रही हैं। करनाल के लेफ्टिनेंट विनय नरवाल की बहन सृष्टि भी पूछ रही हैं। क्या शीतलब बेन और सृष्टि के खिलाफ भी एफआईआर होगी? आज कोई दिवस कोई वोट नहीं करता जो अपनी गवर्नमेंट ने पोानी सुविधा रावी छला वीआईपी होली गाड़ियों हो तारो जीव छे टैक्स पे करे इनो जीव नथ कोई नहीं आया वहां पे डेढ़ घंटा वो जिंदा था कोई नहीं आया वहां पे अगर कोई आर्मी होती तो मेरे को मर सकता था कोई नहीं आया वहां पे कोई नहीं आया उम्मीद थी और अब भी है कि सरकार उन परिवार के लोगों को जवाब देगी। बताएगी कि सुरक्षा में चूक क्यों हुई? क्यों पता नहीं चला कि हजारों लोग पहलगांव आ गए। हजारों लोग बैसारण जा रहे हैं। हजारों पर्यटक पहले से प्लान बनाकर आ रहे हैं। फिर कैसे कह दिया गया कि अचानक आ गए। होटल वालों ने नहीं बताया। टूअर ऑपरेटर्स ने नहीं बताया। अब तो इसका भी खंडन आ गया है कि सबको पता है कि वैसारण खुला है। लोगों ने हफ्तों पहले प्लान बनाया और वैसारण हमेशा ही खुला रहता है। अचानक खुलने की बात गलत निकली। तो इस पर जवाब आना चाहिए था या नहीं? अगर कोई यह सवाल पूछ देगा तो क्या एफआईआर होगी? इंडियन एक्सप्रेस की खबर है। पूर्वोत्तर में पहलगाम हमले के बाद सोशल मीडिया पर लिखने के आरोप में 22 लोग गिरफ्तार किए गए हैं। इनमें से 17 लोग केवल असम में गिरफ्तार हुए हैं। एआईडीयूएफ के विधायक अमीनुल इस्लाम को भी गिरफ्तार किया गया है। कई जगह इस बारे में रिपोर्ट प्रकाशित हुई है। मगर मीडिया की रिपोर्ट से साफ नहीं होता कि 22 लोगों ने भारत के विरोध में या पाकिस्तान के समर्थन में क्या लिखा। बस यही लिखा मिल रहा है कि भारत विरोधी पोस्ट के कारण गिरफ्तार किए गए हैं। मुख्यमंत्री हेमंता विश्वा शर्मा ने ट्वीट किया है कि अगर कोई प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान का समर्थन करता पाया गया तो उसे सहन नहीं किया जाएगा। अप्रत्यक्ष रूप से पाकिस्तान के समर्थन की परिभाषा आखिर क्या होगी और किसकी होगी? किस आधार पर यह तय किया जाएगा? किस कानून के तहत ऐसी कार्रवाई की जा रही है? सरकार को एक बार सोचना चाहिए। हमारे जैसों के बोलने से, नेहा सिंह राठौर के बोलने से, माधुरी काकोटी के बोलने से यह लोकतंत्र सुंदर लगता है। नेहा और माधुरी जैसी आवाजों की खास बात यह है कि इनके पीछे कोई सुरक्षा नहीं। यह अकेली आवाज हैं और अपने दम पर बोल रही हैं। हर लड़की को इनसे सीखने की जरूरत है कि ऐसे ही उन्हें बोलना है और सही बोलने पर इसी तरह उन्हें डराया भी जाएगा। भीड़ की आड़ में बोलना बोलना नहीं होता है। सरकार के समर्थकों को देखकर किसी पर निशाना साधना बोलना नहीं होता। सरकार और भीड़ के दम पर जो लोग बोल रहे हैं उनका मुंह बंद कराना कोई बड़ी बात नहीं। हम जानते हैं कि बहुत से लोग भीड़ बनाने में लगे हैं। ताकि उसके नाम पर उसकी आड़ में किसी को भी टारगेट किया जा सके। हम यह भी जानते हैं कि हाउसिंग सोसाइटी के बहादुर अंकल बेहद डरपोक हैं। जिस दिन उनका भरोसा गया कि भीड़ अब नहीं है, सरकार एक्शन ले सकती है, वह बोलना बंद कर देंगे। यह बोलते ही इसलिए हैं कि इनबॉक्स में एक भीड़ बन गई है। इसलिए जब भी कोई हमला होता है, उसके नाम पर हमले के नाम पर भीड़ बनाई जाती है ताकि राष्ट्रीय सुरक्षा का बहाना बनाकर सवाल करने वालों को टारगेट किया जा सके। सरकार की गलतियों पर पर्दा डाला जा सके। इन लोगों के पास कोई तर्क नहीं बचा, दलील नहीं बची। बस भीड़ है जो बच गई है। सरकार का यह तीसरा कार्यकाल है। उसे पता है कि जनता पूछने लगी है। आगे और पूछेगी और जवाब तो है नहीं। तो सवाल पूछने वालों को गायब करना शुरू करो। कई 100 गोदी चैनल सवाल नहीं पूछते। कई 100 गोदी चैनलों के मालिक और संपादक सवाल नहीं पूछ पाते। तो जहांजहां से सवालों के आने की संभावनाएं हैं, पहले से ही कुचलते चलो। 4 पी.m. चैनल को बंद कर। आप डरा रहे हैं। संदेश देने की कोशिश कर रहे हैं कि अगर सवा5 मिलियन सब्सक्राइबर वाले चैनल को बंद किया जा सकता है तो किसी को भी बंद कर देंगे। एक न्यूज़ चैनल नहीं है आज के भारत में जिस पर जनता भरोसा करती हो। बीजेपी के वोटर भी समझते हैं कि गोदी मीडिया पत्रकारिता के लिए नहीं है। बीजेपी के कार्यकर्ता भी समझने लगे हैं कि ऐसी क्या बात है कि कोई इस सरकार से पूछता नहीं और पूछने पर सरकार परेशान हो जाती है। 26 लोग मारे गए। उनके परिवार के लोग सरकार और गोदी मीडिया की तरफ जिंदगी भर देखेंगे कि सुरक्षा देने का काम किसका था। जिसका था चूक उसकी थी। इस चूक के लिए कोई सजा नहीं दे रहा। लेकिन अहंकार देखिए कि स्वीकार भी नहीं किया जा रहा। आधिकारिक तौर पर भी नहीं बता रहे। जो सवाल पूछ रहे हैं उनके YouTube चैनल बंद किए जा रहे हैं। आप करोड़ों दर्शकों की चुनौती यहां से और बढ़ जाती है। चैनल कब बंद हो जाए यह चिंता की बात तो है। सरकार अगर चार यूबर और उनके साथ काम करने वाले 10 20 लोगों को भूखा मारना चाहती है तो कोई बड़ी बात नहीं। बात हमारी ही नहीं। आपकी भी है। आप जानते हैं यह लड़ाई आप भी लड़ रहे है  आगे भी लड़ते रहेंगे। ब्रिटिश हुकूमत भारत के लोगों को जेल के नाम पर डराया करती थी। गांधी जी ने जेल जाने को खेल में बदल दिया। जेल का डर भारत से चला गया और भारत आजाद हो गया। यही डर की अंतिम दवा है।


Post a Comment

Previous Post Next Post

Contact Form