बिहार चुनाव 2025: परंपरा से हटकर एक नई चुनौती
अगला चुनाव जो होने वाला है इस देश में वह है बिहार का चुनाव। लेकिन इस बार एक थर्ड फैक्टर की चर्चा बहुत है। राजनीतिक रूप से कितने कारगर होंगे वो अभी पता चलेगा। लेकिन चर्चा बहुत है। और वो है प्रशांत किशोर (पीके) कि बाकी पार्टीज को चुनाव लड़वाते थे। अब वो खुद चुनाव लड़ेंगे। आपने जब कहा कि चार प्लेयर तीन प्लेयर है तो आप कांग्रेस वालों को भूल गए वो नाराज हो जाएंगे हमसे। नहीं नहीं नहीं एक सेकंड एक एक सेकंड नीतीश कुमार की रेटिंग गिरी है जो लोग उनसे काफी सेटिस्फाइड है वो आपका डॉक्टर बत्रा दो महीने के फासले में क्या बता दो चीजें एक तो ट्रेंड देखेंगे एक और दूसरा देखेंगे कि स्तर क्या है उस नंबर का तो आप देखिए एक्चुअली द हेडलाइन ऑफ दिस स्लाइड इस प्रशांत किशोर नीतीश कुमार को पीछे छोड़ अब इस तेजस्वी यादव की गिरावट में थोड़ा बहुत प्रशांत किशोर का हाथ है लेकिन एक और आंकड़ा है कि कुछ कांग्रेस के नेता भी अब प्रैक्षक् पा रहे हैं तो तो आपको लगता है ये एक बहुत बड़ी एक अग्नि परीक्षा होगी पीके के लिए क्योंकि वो पहली बार उतर रहे हैं। ही इज़ अ फर्स्ट टाइमर। द लैक ऑफ अ कार्डर कैन हर्ट यू। अब भाई अगला चुनाव जो होने वाला है इस देश में वो है बिहार का चुनाव। बिहार में बाकी लोग तो हैं ही एक तेजस्वी यादव हैं लालू प्रसाद यादव के बेटे। नीतीश कुमार हैं, बीजेपी है। लेकिन इस बार एक थर्ड फैक्टर की चर्चा बहुत है। राजनीतिक रूप से कितने कारगर होंगे वो अभी पता चलेगा।
लेकिन चर्चा बहुत है। और वो हैं पीके। पीके ने खूब रैली वैली की। पीके ने वॉक की पद यात्रा, अपनी जन स्वराज यात्रा। उसके बाद उन्होंने कहा इस सब का ग्रैंड कलनेशन 11 अप्रैल को बिहार के पटना के गांधी मैदान में होगा जिसमें लाखों लोगों की भीड़ आएगी। कुछ भीड़ दिखी लेकिन वो लाखों लाख की भीड़ नहीं थी और कुर्सियां खाली रह गई जिस पर आग बबूले हो गए प्रशांत किशोर। तो पीके के गुस्से के पीछे की वजह थी जो उन्होंने बताया कि उनके समर्थकों को पटना के अंदर नहीं आने दिया। गाड़ियां रोक दी। वरना वह गांधी मैदान भर देते। लेकिन पीके का यह कॉन्फिडेंस जेनुइन कॉन्फिडेंस है या ओवर कॉन्फिडेंस? कितने पानी में है पीके? क्या पीके की रिपोर्ट ओके है या नहीं? इन सारी चीजों पर आज हम चर्चा करेंगे। सर्वे के माध्यम से जानने का प्रयास करेंगे कि पीके कितने पानी में हैं। डॉ. कार्तिकेय बत्रा आपका बहुत-बहुत स्वागत। मैं सबसे पहले चाहूंगा कि आप दर्शकों को एक जरा वो दे दें। एक बैकग्राउंड प्रशांत किशोर की पद यात्रा के बारे में, प्रशांत किशोर के स्टेटमेंट्स के बारे में वो क्या करना चाह रहे हैं? वो पॉलिटिकल आउटफिट ले आए हैं। संकेत देखिए काफी समय से वो पॉलिटिक्स में अब एक्टिव हैं बिहार में। मतलब एज अ प्रॉपर पॉलिटिशियन हमको वी वर यूज्ड टू सीइंग हिम एज अ मैनेजमेंट पर्सन। कि बाकी पार्टीज को चुनाव लड़वाते अब वो खुद चुनाव लड़ेंगे..
जनसुराज यात्रा: सिर्फ एक पदयात्रा या जनसंपर्क क्रांति?
अब अगर हम पूरा समरी देखें पिछले कुछ समय में जिस तरीके के नैरेटिव्स वो रहे हैं। पहली बात तो वो बिहार के विकास की बात कर बाय द वे आपने जब कहा कि चार प्लेयर तीन प्लेयर हैं तो आप कांग्रेस वालों को भूल गए वो नाराज हो जाएंगे आपसे। नहीं नहीं नहीं एक सेकंड एक एक सेकंड तो मैं यहां पर एक बार आपको बता दूं कि हम बात कर रहे थे विपक्ष और सत्ता का जो गुट है उसमें बीजेपी जेडीयू एक फैक्शन है लालू प्रसाद यादव एक फैशन है अब कांग्रेस को बुरा लगे चाहे अच्छा लगे कांग्रेस की परफॉर्मेंस बहुत खराब थी 2020 में करेक्ट 70 सीट लेकर के 19 जीतोगे और उसके बाद फिर बुरा भी मानोगे नहीं नहीं ठीक बात है उस पर भी एक्चुअली कुछ डेवलपमेंट है जो मैं आपको बताऊंगा शो के दौरान खैर कम कमिंग बैक टू पीके। तो प्रशांत किशोर अब बिहार के विकास की बात कर रहे हैं। और अगर एक समरी देखें ना उनका ज्यादा फोकस है रीजनल पार्टीज को अटैक करने का। मतलब जेडीयू के पीछे जा रहे हैं नीतीश कुमार के और आरजेडी के पीछे जा रहे हैं तेजस्वी यादव के और लालू यादव। कुछ हद तक कांग्रेस और कुछ हद तक बहुत कुछ हद तक मतलब बहुत कम बीजेपी तो टारगेट है चारों को टारगेट कर रहे हैं। एक एंटी एस्टैब्लिशमेंट फेस बनने की कोशिश कर रहे हैं। ये जो स्टैटर्स को है वो बिहार डिर् उससे बेटर करता है। तो ये चारों ही सही नहीं है। बट उसमें एक डिफरेंशिएशन है। रीजनल पार्टीज को ज्यादातर टारगेट कर रहे हैं और नेशनल पार्टीज को कम बिल्कुल। लेकिन वो बीच-बीच में बोलते हैं। कांग्रेस के खिलाफ भी बोलते हैं क्योंकि मैंने बहुत क्लोजली इनकी स्पीचेस मॉनिटर की है। इस वजह से मैं आपको बता सकता हूं। एंड आई हैव इंटरव्यूड हिम जब जन स्वराज यात्रा चल रही थी तो जिस पैशन से अपना चल रहे थे वो भी देखने लायक था। अब आते हैं उन्होंने एक बात जैसे कही कि कांग्रेस ने बिहार की किस्मत आरजेडी के हवाले कर दी और बीजेपी ने जेडीयू की तो वो इनडायरेक्टली उनको आड़े हाथ लेते हैं। बिल्कुल आपसे मैं इस बात से अग्री करता हूं। करेक्ट। और लेकिन वह जितना ज्यादा टारगेटेड अटैक है अगेंस्ट लालू और नीतीश या लालू के बेटों पर और नीतीश कुमार पर उतना ज्यादा बीजेपी और कांग्रेस के खिलाफ नहीं है। बोलते हैं लेकिन कम बोलते हैं। अब उनका तर्क ये हो सकता है कि भाई जो जो सही मायने में बिहार में सक्रिय है, हम उसी के बारे में तो ज्यादा बोलेंगे। इतनी अकाउंटेबिलिटी ज्यादा होगी। यह तस्वीरें हैं उस जन स्वराज यात्रा की जब वो फुल फ्लेजेड पार्टी नहीं बने थे और जब वह पूरे बिहार घूम रहे थे। अब आते हैं यह देखने के लिए और यह जानने के लिए कि पीके इस बार के चुनाव में क्या करेंगे? पीके कितने पानी में यह जानने का प्रयास करेंगे और वो मैं चाहता हूं डॉक्टर कार्तिकेय बत्रा आप रिसर्च के और सर्वेक्षण के माध्यम से हम लोगों को उसके बारे में बताएं। तो संकेत आज के शो का संदर्भ में एक रीसेंट सर्वे है जो सी वोटर ने कराया है। तकरीबन 1200 का सैंपल है। यह सारा टेलीफोन बेस सर्वे है। तो इसमें हमने पॉलिटिकल पल्स जानने की कोशिश की कि क्या चल रहा है बिहार में। तो बहुत सारे सवाल थे।
सर्वे संकेत: नीतीश और तेजस्वी की गिरावट, पीके की चढ़ाई
मैं कुछ आपको एक समरी दे रहा हूं। उसमें जैसे हमने पूछा पहली बात कि सरकार और मुख्यमंत्री की परफॉर्मेंस से आप कितना खुश हैं? तो अगर हम उस डेटा पॉइंट पर पहले आए तो आप देखेंगे कि दो चीजें हैं कि ज्यादा लोग नाख है बनिस्बत खुश के या कहीं बीच में मतलब अगर हम सेटिस्फाइड का आंकड़ा देख नीतीश कुमार की रेटिंग गिरी है जो लोग उनसे काफी सेटिस्फाइड है वो आंकड़ा है और दूसरा ऑब्जरवेशन कि नीतीश कुमार की अपनी रेटिंग से ज्यादा उनके सरकार की रेटिंग अच्छी है जिसका मतलब ये है कि नीतीश कुमार का व्यक्तित्व तो नीतीश कुमार का व्यक्तित्व सरकार की पॉपुलरिटी को गिरा रहा है। जैसे देखिए पहले आप स्टेट गवर्नमेंट को देखिए। फरवरी और अप्रैल दोनों का डाटा है। इसमें अगर हम ये कहें कि हमने ये पूछा कि आप राज्य सरकार के काम से कितना खुश हैं? जो आप रिजल्ट देख रहे हैं ये सवाल जो है वो सवाल ये है कि आप काम से कितने संतुष्ट हैं? करेक्ट। ठीक। डॉक्टर बत्रा किसके काम? राज्य सरकार के। हां। ये पहले राज्य सरकार का टेबल है फिर मुख्यमंत्री का तो राज्य सरकार में संकेत अगर आप देखिए तो कुछ ज्यादा चेंज नहीं हुआ है फरवरी और अप्रैल के बीच में वेरी मच सेटिस्फाइड 32 तकरीबन थे अभी भी 32% है और नॉट एट ऑल सेटिस्फाइड वो 35 थे वो तकरीबन 33 है इसका मतलब एक्चुअली जो नाराज वर्ग था वो घटा है मतलब राज्य सरकार की ओर मैं बोल रहा हूं जो नॉट एट ऑल सेटिस्फाइड थे मतलब बिल्कुल खुश नहीं है वो बीच की श्रेणी में आ गए हैं कि कुछ हद खुश है। तो राज्य सरकार की रेटिंग एक्चुअली इतनी बुरी नहीं जा रही। लेकिन अगर अब हम मुख्यमंत्री का आंकड़ा देखते हैं। मेरा मतलब है राज्य सरकार में एक पॉजिटिव ट्रेंड है। हालांकि यहां पर भी अगर आप सेटिस्फाइड टू सम एक्सटेंट को एक स्विंग वोटर माने तो मामला अभी भी यहां पर फंस सकता है। लेकिन जो मुख्यमंत्री का आंकड़ा है वहां आप देखेंगे कि सीएम की जो रेटिंग है वो पिछले दो महीने में तकरीबन तकरीबन 1ढ़% गिरी है। और वो लोग जाके बैठ गए हैं उन लोगों में जो कहते हैं कि हम बिल्कुल खुश नहीं है और उसमें से कुछ आंकड़ा गया है कि हम कुछ हद तक खुश है। मतलब नीतीश कुमार की अपनी पॉपुलैरिटी डाउन गई है पिछले दो महीने में और उनकी राज्य सरकार की पॉपुलैरिटी या तो वही है या एक्चुअली थोड़ी बढ़ी ही है। हम तो इस संदर्भ में फिर अगला सवाल ये था कि आज की तारीख में अगर पोल हो तो आप प्रेफर्ड सीएम चॉइस किसको मानते हैं? अब इसमें दो चीजें ध्यान रखिएगा। हम पहली बात अभी चुनावी मौसम पूरी तरीके से आया है अभी परमान नहीं चढ़ा है। हां। अभी तो आईपीएल का मौसम चल रहा है। हां। दूसरी बात बीजेपी ने नीतीश कुमार के पीछे अपना हाथ अभी एक तरीके से रख दिया है लेकिन थोड़ी बहुत ए्बिग्विटी हमेशा रहती है बीजेपी और जेडी में हालांकि बार-बार यही कहा जा रहा है। अभी पीछे आपने सुना होगा कि हरियाणा के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने क्या बोला कि सम्राट चौधरी बीजेपी को बिहार में जितवाएंगे। करेक्ट। लेकिन उसके बाद फिर एक कोर्स करेक्शन भी किया गया बीजेपी के द्वारा। तो यह दो चीजें हैं कि एक तो इलेक्शन पूरी तरीके से नहीं चढ़ा है। दूसरा बीजेपी और जेडीयू के रिलेशन में हमेशा एक एग्विटी रहती है। वो अभी भी है कुछ हद तक। हालांकि ये कहा जा रहा है कि मुख्यमंत्री के फेस नीतीश कुमार इस संदर्भ में जब ये सवाल पूछा गया कि देखिए अभी सबसे प्रेफर्ड मुख्यमंत्री का चॉइस कौन है? तो रिजल्ट जो आया वो अगली स्लाइड पर है। आप देखेंगे नीतीश कुमार जी का अपना आंकड़ा काफी कमजोर है। नीतीश कुमार जी का अपना आंकड़ा केवल 15% ये मैं दर्शकों को जरा संदर्भ के लिए बता दूं। सवाल ये था कि आप परफॉर्मेंस से कितने संतुष्ट हैं? और उसके बाद उसमें दो विकल्प थे सी वोटर के सर्वे में। राज्य सरकार की परफॉर्मेंस से और मुख्यमंत्री की परफॉर्मेंस से। पहला सर्वेक्षण हुआ 2 फरवरी को। दूसरा हुआ अह जून में। 6 अप्रैल 6 अप्रैल वो फ्लिप है वो ओ ओके है वो फ्लिप है एक फरवरी में हुआ और एक अप्रैल में हुआ यानी दो महीने का फासला था दो महीने के फासले के अंदर राज्य सरकार की टैली अगर आप देखें तो वो उतनी ही उतनी उसमें कोई बहुत ड्रामेटिक गिरावट नहीं आई कहू थोड़ी सी इंप्रूवमेंट भी हो गई लेकिन मुख्यमंत्री के चेहरे में आप देखिए कि वेरी मच सेटिस्फाइड घट गया 31.3 से 29.8 हो गया और नॉट एट ऑल सेटिस्फाइड 39.3 से बढ़कर 41.2 हो गया। यानी कि यहां पर एक स्विंग देखने को मिला। जैसे-जैसे चुनाव और आगे जाएगा
कौनसे वोट बैंक की ओर झुके हैं पीके?
यह सी वोटर का जो ट्रैकर सर्वे है उसमें ये सारी चीजें और आती रहेंगी और इससे एक और अनुमान मिलेगा। अब डॉक्टर बत्रा जो बता रहे हैं अब उस स्लाइड पर आइए कि अगर आज चुनाव हो जाते हैं तो मुख्यमंत्री का चेहरा कौन और ये पहला हुआ फरवरी में दूसरा हुआ अप्रैल में बिल्कुल वैसे ही दो महीने का फासला है डॉक्टर बत्रा दो महीने के फासले में क्या बदला दो चीजें एक तो ट्रेंड देखेंगे एक और दूसरा देखेंगे कि स्तर क्या है उस नंबर का पहले आप देखिए नीतीश कुमार जी अप्रैल में 15% पे है तेजस्वी 35 सम्राट चौधरी 12 1/2 और प्रशांत किशोर तकरीबन 17 सवा5 तो आप देखिए एक्चुअली द हेडलाइन ऑफ़ दिस स्लाइड इज़ कि प्रशांत किशोर नीतीश कुमार को पीछे छोड़ चुके हैं। हम लेकिन अब इसको आप एक देखने का तरीका ये भी हो सकता है कि एनडीए को अगर हम जोड़ दें जेडीयू 10 बीजेपी तो वो 28 बनता है। हम तो ऐसे में एनडीए 28, तेजस्वी यादव 35 और प्रशांत किशोर 17 पर यहां इंडिविजुअल्स की बात हो रही है। डॉक्टर बत्रा प्लीज देखिए सवाल क्या था? जनता से सवाल यह था हु इज द मोस्ट प्रेफर्ड कैंडिडेट टू बी द नेक्स्ट चीफ मिनिस्टर ऑफ बिहार? तेजस्वी यादव 5% गिरे जरूर हैं लेकिन अभी भी लीड में है। बिल्कुल है और वो गिरावट का मैं बताता हूं क्या है मैं वही कह रहा हूं आपको कि नीतीश कुमार और जो बीजेपी के बीच में एक ए्बगिटी रहती है ना हम कि अभी इस समय अगर नीतीश कुमार सर्वे शर्मा सबके एक्सेप्टेड लीडर होते एनडीए के तो क्यों सम्राट चौधरी 12% पे होते आप बताइए सही बात है मैं उदाहरण देता हूं पंजाब 2022 में जब तक भगवंत मान अनाउंस नहीं हुए थे च्नी साहब आगे चल रहे थे सबसे भगवंत मान पीछे और तीसरे नंबर पर केजरीवाल जी थे हां जैस ही अनाउंसमेंट हुआ वो केजरीवाल जी का सारा जो था वो चला गया भगवंत मान जी पे और वो नंबर एक पर आ गए हां हां तो कहने का मतलब है वो ए्बिग्विटी जब तक थी तब तक वो लग रहा था कि एक व्यक्ति आ गया जैसे ही वो ए्बिग्विटी गई वो सब एक तरफ हो गया ऐसा जरूरी नहीं है हर जगह हो जैसा कि मैंने कहा अगर बीजेपी जेडीयू के रिश्ते खराब होते हैं तो ये ये जो समेशन मैं कह रहा हूं 15 12 जोड़ दीजिए ये गलत होगा लेकिन अगर वो बेहतर होता या समन्वय बन जाता तो ये जुड़ भी सकता लेकिन एक्स फैक्टर है प्रशांत किशोर की एंट्री 17% हम जो बढ़ी है 14.9% से 2 महीने में बढ़ के 17.2 इस ट्रैकर सर्वे में सी वोटर के ये सिग्निफिकेंट है सम्राट चौधरी की भी बड़ी हम और डिप किसकी हुई है? नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव की। हम अब इस तेजस्वी यादव की गिरावट में थोड़ा बहुत प्रशांत किशोर का हाथ है। लेकिन एक और आंकड़ा है कि कुछ कांग्रेस के नेता भी अब ट्रैक्शन पा रहे हैं। हम और इसमें अगर हम मतलब ये कहें कि कांग्रेस कमजोर थी 2020 के विधानसभा चुनाव में। यह बात तो सही है। लेकिन 24 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस ने अच्छा प्रदर्शन दिया। और कांग्रेस ने दलित वोट को अपनी तरफ काफ़ी हद तक खींचा। वो सासारा की सीट जीते और अगर आप पप्पू यादव की भी सीट मिला दो तो कांग्रेस चार सीटें लेकर आई। तो मेरा ये कहने का मतलब है कि कुछ कांग्रेस में कुछ एक अपटेक आया है। क्या वो कितना वो ट्रांसलेट होता है? कितना वो कांग्रेस को बारगेनिंग में हेल्प करता है आरजेडी के साथ ये भी देखना। हम तो तेजस्वी यादव की गिरावट है लेकिन वो सबसे आगे हैं। नीतीश कुमार की गिरावट सबसे बड़ी चिंता है। जेडीयू और नीतीश कुमार की तीन परसेंटेज पॉइंट होते हैं। बिल्कुल और मैं ये जानना चाहता हूं डॉक्टर बत्रा ये जो प्रशांत किशोर का गेन है 14.9 से 17.2 दिस इज एट द कॉस्ट इज दिस एट द कॉस्ट ऑफ आरजेडी या एट द कॉस्ट ऑफ़ जेडीयू बीजेपी? बहुत बढ़िया सवाल है और अगली स्लाइड इसी के बारे में कि प्रशांत किशोर किसी किस किसकी किसके वोट ले रहे हैं? देखिए इसमें तीन तरह की कैटेगरी मैं इसमें बात कर रहा हूं।
संगठन की चुनौती: क्या बिना मजबूत कैडर के संभव है परिवर्तन?
पहली कैटेगरी वह बीजेपी वोटर जो एनडीए के साथ है लेकिन वह जेडीयू से खुश नहीं है। वो वोटर कहीं ना कहीं प्रशांत किशोर की तरफ थोड़ा देख रहे हैं कि भाई एक वैक्यूम है। हम नीतीश कुमार जी से खुश नहीं है लेकिन हमारी सीट पर जेडीयू ही शायद लड़ेगा। हम बीजेपी को चाहते हैं तो क्या प्रशांत किशोर विकल्प हो सकते हैं क्योंकि हम आरजेडी को वोट नहीं देना चाहते। दूसरा वो वाला यूथ अपर कास्ट जो पिछली बार तेजस्वी यादव जी के साथ गया था वो भी शायद देख रहा है कुछ हद तक प्रशांत किशोर को। इसीलिए आप देखिएगा प्रशांत किशोर बार-बार तेजस्वी यादव की एजुकेशन को अटैक कर रहे हैं। क्योंकि उनको पता है कि युवा शक्ति पिछली बार तेजस्वी यादव के साथ थी। नौकरियों पर, पढ़ाई पर एक एस्पिरेशनल जो उन्होंने नैरेटिव दिया था। तो जब वो तेजस्वी यादव को उनके एजुकेशनल बैकग्राउंड पर अटैक करते हैं तो वो उस क्रेडिबिलिटी को डेंट करते हैं कि ये एस्पिरेशंस क्या समझेंगे। ये तो खुद भी पूरा स्कूल पार नहीं किए। तीसरे कुछ ऐसे वोटर है जो यादव कुर्मी कोरी नहीं देखते। वो एक कास्ट एग्नोस्टिक वोट है। उसमें से भी कुछ हिस्सा एक प्रशांत किशोर की ओर जा रहा है। अब इसमें मैंने लिखा है रिपीट ऑफ चिराग मॉडल। चिराग मॉडल आपको पता है 2020 में क्या हुआ था कि चिराग पासवान ने एनडीए का कवच पहन कर जेडीयू के खिलाफ कैंडिडेट छोड़े थे और उन्होंने जेडीयू को बहुत डेट पहुंचाया था लेकिन उस समय के चिराग पासवान आज के पीके में एक फर्क है। चिराग पासवान ओपनली कहते थे मैं एनडीए का हिस्सा हूं लेकिन मैं जेडीयू के खिलाफ हूं। तो उनको महागठबंधन का वोट मिलने का मतलब बहुत कम है। क्योंकि वो साफ साफ कह रहे थे मैं मोदी जी का हनुमान हूं। लेकिन आज पीके अभी तक कम से कम बीजेपी की प्रॉक्सी की तरह नहीं दिखते। तो ऐसे में दो चीजें होती है। एक वो वोटर जो एंटी जेडीयू प्रो बीजेपी है वो पीके पर कितना भरोसा करते हैं। कि भैया ये तो बीजेपी की प्रॉक्सी है या नहीं हमें पता नहीं। तो अगर हम इनको वोट दे दो तो क्या हम सही में एनडीए को वोट दे रहे हैं या यह बाद में कुछ और हो जाए। ऑन द फ्लिप साइड जो महागठबंधन का कमिटेड वोटर है अगर वो कहीं ना कहीं नाराज हो गया उब गया कमिटेड नहीं नॉन कमिटेड वोटर अगर वो महागठबंधन से नाराज है तो वो पीके को उतने डिसकंफर्ट से नहीं देखेगा जितना वो चिराग पासवान को देख रहा था 2020 में क्योंकि पीके की एलिजेंस बीजेपी के साथ अभी तय नहीं हुई है हम तो ये फर्क है चिराग पासवान और पीके में पीके दोनों तरफ से डेंट कर सकती है नहीं वो तो कर सकते हैं। लेकिन डॉक्टर बत्रा इसमें एक बहुत बड़ी चीज यह होती है। देखिए एक राजनीतिक दल को भीड़ जुटाने में या ना जुटा पाने में और जमीन पर अपने सपोर्ट को वोट में तब्दील कर लेने में एक जो बहुत बड़ा जरूरत है वो है कार्डर की कि आपके पास इतना मजबूत कार्डर हो जो गांवगांव गलीगली मोहल्ले मोहल्ले से वोटर तैयार करके और वो कार्यकर्ता लोगों को वोटिंग बूथ तक लाए और वह लोग फिर वोट करें। यह कन्वर्शन बहुत जरूरी है। मैं हो सकता है किसी पार्टी का या किसी इंडिविजुअल का समर्थक हूं। लेकिन क्या मैंने इतनी इतना जोर किया मैंने कि मैं जाकर के वोटिंग स्टेशन पे जाके वो वोट करूं या मैं अपना ध्यान बदलूं।
क्या दो नावों में पैर रखे हैं PK?
तो आपको लगता है ये एक बहुत बड़ी एक अग्नि परीक्षा होगी पीके के लिए क्योंकि वो पहली बार उतर रहे हैं। ही इज़ अ फर्स्ट टाइमर द लैक ऑफ अ कार्डर कैन हर्ट हिम इसका जवाब है शायद ओवर कॉन्फिडेंस है उनका। इसका जवाब है अगली स्लाइड। क्या बात है। जहां हमने ये सवाल किस किस चीज के बारे में बताइए? हु इज पीके अट्रैक्टिंग? नो विल पीके बी एबल टू सस्टेन द मोमेंटम जिस पर आपने जिक्र किया। है ना? आपने बिल्कुल सही कहा कि एक बात होती है कि मैं आज अप्रैल के महीने में अक्टूबर नवंबर में जो चुनाव होना है उसके लिए मैं अच्छे आंकड़े अपनी तरफ अट्रैक्ट कर रहा हूं। लेकिन चुनाव तक आते-आते क्या यह वोट में कन्वर्ट होगा? इसका जवाब है कि मतलब ऐसा कोई थ्योरी नहीं कहता कि ये होगा या नहीं होगा। ये डिपेंड करेगा बहुत सारे फैक्टर्स पे। पहली बात अभी चुनाव तो बन रहा है ना। लोग अभी भी डिसाइड कर रहे हैं। दो तरह से कैंपेन अभी शुरू भी नहीं हुए हैं। पीके ने कुछ मुद्दे उठाए हैं। बाकी लोग क्या मुद्दे उठाते हैं? दूसरा क्या पीके केवल वोट कटर है? क्या एक्चुअल में वो पोजीशन कर सकते हैं कि मैं चुनाव जीत सकता हूं। अगर वो केवल वोट कटर है तो प्रोस्पेक्ट कम हो सकते हैं। बट अगर वो सही में पोजीशन कर सकते हैं कि देखिए मैं जीत सकता हूं कुछ सीटें इतनी सीटें कि मैं कम से कम अलायंस फॉर्मेशन में तो मेरी एक भागीदारी हो सकती है। तो हो सकता है कि ये जो मोमेंटम है वो कैरी फॉरवर्ड हो जाए। और जो आखरी पॉइंट जिसका मैंने पहले में जिक्र कर दिया कि अभी तो दोनों पार्टियों ने अपने पत्ते भी नहीं खोले हैं दोनों साइड्स में। अभी तो पीके एक जमीन तैयार कर रहे हैं अपने लिए। कभी-कभी संकेत क्या होता है ऐसे चुनाव में जमीन कोई और तैयार करता है लेकिन उसका फायदा मिल जाता है उस पार्टी को जिसके पास वो अपेरेटस है। इसका बहुत अच्छा उदाहरण है 2013-14 जब मोदी जीत गए लोकसभा उसमें एक बहुत बड़ा रोल निभाया इंडिया अगेंस्ट करप्शन में। तो आम आदमी पार्टी खुद तो कुछ खास कर नहीं पाई
क्या PK जाएंगे आप की राह या DMDK की?
लोकसभा में लेकिन वो जिस तरीके का डिस्कंटेंट पैदा हुआ था लोगों में मीडिया नॉन प्रॉफिट ऑर्गेनाइजेशन सिविल सोसाइटी कैट सब जोड़ झाड़ कर इकॉनमी में एक स्लोनेस थी उसका सारा फायदा मिल गया बीजेपी को तो ऐसे में अगर पीके संगठन नहीं खड़ा कर पाते लेकिन मुद्दे सही उठाते हैं और वो मुद्दे को अप्रोप्रिएट कर लेता है वो कोई कोई भी हो सकता है। बीजेपी भी हो सकती है, आरजेडी भी हो सकती है, जेडीयू भी हो सकती है, कांग्रेस भी हो सकती है। तो ऐसे में उस पार्टी को चांसेस ज्यादा है जिसका अपरेटस स्ट्रांग है जमीन पर जो उन इश्यूज को एंपलीफाई कर सके। हम आई एम श्योर यहां पर यहां पर डॉक्टर बत्रा एक आरोप लगता है प्रशांत किशोर पर कि ये सारी चीज करके अब देखिए वहां सत्ता में कौन है? पिछले 2005 से लेकर के और अब लगातार बारिंग कुछ साल अगर आप बीच में निकाल दें सत्ता में एक बीजेपी जेडीयू कॉम्बिनेशन ही पावर में रहा। ठीक है ना? और अब अगर इस तरीके का माहौल खड़ा हो तो उसका फायदा कौन उठाएगा? ये एक बड़ा सवाल हो सकता है। पिछली स्लाइड पे आपको कहा कि आप ये सोचिए कि वोटर पीके को कैसे पर्सव कर रहे हैं। अगर मैं एक एंटी जेडीयू प्रो बीजेपी वोटर हूं तो क्या मैं पीके में वो क्रेडिबिलिटी देख रहा हूं कि बाद में ये बीजेपी के साथ जुड़ जाएंगे। अगर ऐसा है तो महागठबंधन को मतलब तो पीके की जो एंट्री है वो एनडीए को नुकसान होने से एक्चुअली बचाएगी क्योंकि अदरवाइज या वो वोटर घर बैठ जाएगा और या कुछ चांस है कि वो वोटर महागठबंधन को चला जाएगा जो नाराज वोटर है जेडीयू से लेकिन जो बीजेपी का समर्थन करता है हम तो वो घर बैठा वाला वोटर वो अगर पीके को जा रहा है वो बेटर है वो घर बैठे वाला वोटर महागठबंधन को जा रहा है। वही अगर इनके की क्रेडिबिलिटी ये बनती है कि देखिए ये तो नीतीश कुमार को अटैक कर रहे हैं। ये तो एनडीए को अटैक कर रहे हैं। तो क्या तेजस्वी यादव के वोटर इनकी तरफ अट्रैक्ट होंगे जो तेजस्वी यादव से नाराज हैं। तो ये सब डिपेंड करेगा संकेत कैसे वो अपने आप को पोजीशन करते हैं अगले कुछ महीनों में। अगर वो अपने आप को एंटी बीजेपी, एंटी जेडीयू प्रेजेंट करेंगे तो वो आरजेडी का नुकसान कर सकते हैं।
अगर वो ज्यादा एंटी आरजेडी एंटी कांग्रेस बनेंगे तो वो एनडीए का नुकसान कर सकते हैं। और विद इन अलायसे आल्सो जैसा कि मैंने कहा कि विदिन जेडीयू बीजेपी भी वो बीजेपी का वो वोटर जो जेडीयू को वोट नहीं देना चाहता वो अब्सॉर्ब करके एनडीए का कुछ रिस्क फैक्टर कम कर सकते हैं। हम ये चिराग पासवान वाले केस से थोड़ा अलग है हम कि वहां हमें पता था कि एक तरफ उन्होंने डेंट किया है क्योंकि वो एनडीए के टेंट में रहकर एनडीए के ही एक अलायंस पार्टनर को टेंट कर रहे थे कि मैं यहां यहां अब तक अब तक कम से कम वो इस तरीके की बात नहीं कर रहे हैं। एक्सक्टली तो यहां अभी ए्बिग्विटी बनी हुई है। हो सकता है यही उनकी गेम हो कि वह दोनों नाव में पैर रखकर सवार होना चाह रहे हो अभी कुछ समय तक। कहने का मतलब अभी इस समय कुछ भी क्लियरली कह पाना मुश्किल है। बट ये जरूर है कि लॉट विल डिपेंड ऑन हाउ ही पोजीशन हिमसेल्फ। अब जैसे ये आप देखिए पीछे सिंबॉलिक तौर पर पीके के पीछे एक तिलकधारी भी है और एक टोपी वाले भी है। आप समझ जाइए कि सिंबल्स पे कितना अच्छा खेलेंगे ये। हम इन्होंने तो यही किया है ना पिछले 101 साल 11 साल में हम सही बात है इंटरेस्टिंग तो है लेकिन अब ये जो मोस्ट प्रेफर्ड चीफ मिनिस्टर कैंडिडेट में ये अपने आप को एक बढ़े हुए ओदे पर पाते हैं यह और आने वाले कुछ महीनों में सी वोटर के ट्रैकर में क्या और ज्यादा बढ़ेगा और बढ़ेगा तो किसको काट के बनेगा बीजेपी और नीतीश कुमार को काट के या फिर आरजेडी और कांग्रेस को डेंट पहुंचा के या उनको काट करके यह एक इंटरेस्टिंग गु्थी रहेगी और इसी से जुड़ा हुआ एक और सवाल है और यह मेरा आखिरी सवाल होगा। लोगों की नजरों में पीके एस एन इंडिविजुअल फॉर द पोस्ट ऑफ चीफ मिनिस्टर वर्सेस पीके एज अ पिटिकल पार्टी बीइंग कंसीडर्ड एस एन अल्टरनेटिव। यह दोनों अलग चीजें हैं। मैं हो सकता है मैं इंडिविजुअल से प्रभावित हूं लेकिन उसकी पिटिकल पार्टी से नहीं। और जिस वजह से जब वो नहीं होगा तो फिर यह भी नहीं होगा। ऐसा ऐसा बहुत होता है संकेत। जैसे ऐसी कितनी रीजनल पार्टीज हैं जहां पे रीजनल में भी सब रीजनल पार्टीज है जहां इंडिविजुअल्स बहुत पॉपुलर है बट वो पार्टी वोट नहीं खींच पाती। हनुमान बेनीवाल राजस्थान में कितने पॉपुलर हैं। आप जाके मतलब लोगों से बात करिए उनकी बेल्ट में। ये तमिलनाडु में अभी अभी तो विजय की बात चल रही है। लेकिन एक आए थे विजयकांत। वो भी सिनेमा से आए थे। उन्होंने ऐसा डेब्यू किया अपना पॉलिटिक्स में उनकी पार्टी 10 11% वोट ले उन्होंने पूरा चुनाव पलट दिया। लेकिन वो एक क्रिटिकल मास क्रॉस नहीं कर पाए। राज ठाकरे अपने पहले चुनाव में डेब्यू करते हैं। 10 से ऊपर विधानसभा सीटें ले आते हैं। लेकिन उसके बाद वो पार्टी ज्यादा चाट नहीं पाती। तो ये कुछ ऐसी है लेकिन फिर एट द सेम टाइम हमारे पास अरविंद केजरीवाल का भी उदाहरण है हम कि वो एक व्यक्ति के आसपास ऐसी पार्टी खड़ी कर देते हैं कि वो दो राज्य जीत जाते हैं। प्रोबेब्ली द मोस्ट सक्सेसफुल पॉलिटिकल एंटरप्राइज इन द लास्ट 10 15 इयर्स इन इंडिया हालांकि अभी सेटबैक हुआ है लेकिन हमारे पास दोनों तरह के उदाहरण है। तो क्या पीके गोस द वे ऑफ ए और डस ही गो द वे ऑफ शायद विजयकांत की पार्टी का नाम था डीएम डीके वाह ए के पीके डीएमडीके आर यू ओके बिल्कुल बिल्कुल डीएमडीके ही था तो इसको ऐसे प्रेस करेंगे कि विल पीके गोके और डीएमडीके वेरी इंटरेस्टिंग वेरी इंटरेस्टिंग खैर ये सर्वे वे हमेशा रोचक रहते हैं। उससे कुछ-कुछ चीजें पता लगती रहती हैं। लेकिन ये कंप्लीट पिक्चर नहीं है। ये अभी डेवलपिंग सिचुएशन है। बन रही है। बन रही है। और जैसेजैसे और बनेगी और पाठशाला आप लोगों के साथ लेकर के आएंगे। तो पी के कितने पानी में उम्मीद है आपको अभी की स्थिति क्या है? उसके बारे में थोड़ा सा आईडिया मिला होगा।