सुप्रीम कोर्ट की गरिमा बनाम सांसद की जुबान: निशिकांत दुबे का विवादित बयान
2020 में प्रशांत भूषण के केस में सुप्रीम कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कार्यवाही शुरू कर दी थी तो क्या निशिकांत दुबे के बयान को लेकर इस बार सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान लेगा अवमानना की कोई कारवाई करेगा यह सवाल तो है ही जिस पर हम इस वीडियो में बात कर रहे हैं लेकिन निशिकांत दुबे के बयान से बीजेपी की दूरी पर बात जरूरी है बीजेपी ने दूरी बना ली लेकिन निशिकांत दुबे ने अपने बयान से कोई दूरी नहीं बनाई राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कह दिया कि अपनी पार्टी के दो सांसद निशिकांत दुबे और दिनेश शर्मा के बयान से दूरी बनाते हैं सवाल है कि निशिकांत दुबे कब अपने बयान से दूरी बनाएंगे कब अपने पार्टी अध्यक्ष की तरह लोकतंत्र संविधान और संस्थाओं के प्रति सम्मान आस्था प्रकट करेंगे तलवार तो दोनों के हाथ में है और ऐसी तस्वीरें बीजेपी के नेताओं की खूब होती हैं लगता है कि जंग के मैदान से आ रहे हैं या जाने वाले हैं इसका मतलब नहीं कि निशिकांत दुबे और जेपी नड्डा तलवार लेकर आमने-सामने हो रहे हैं यह समझना सरासर गलत होगा कि दुबे के बयान को व्यक्तिगत बताकर नड्डा ने उन पर तलवार तान दी है लेकिन यह समझना बिल्कुल गलत नहीं होगा कि नड्डा के बयान के बाद भी निशिकांत दुबे ने अपनी तलवार नीचे नहीं की है नड्डा के बयान कागजी तलवारबाजी की तरह हैं फोटो में जिस तरह से नड्डा साहब तलवार लहरा रहे हैं असल जिंदगी में चलाना भी नहीं आता होगा क्योंकि जिसे तलवार चलानी आती है वह एक हाथ में तलवार पकड़ता है तो दूसरे हाथ में ढाल उठाता है मन लेकर मैदान में नहीं कूदता जेपी नड्डा ने इतना ही कहा कि दुबे और शर्मा का न्यायपालिका और देश के चीफ जस्टिस पर दिए गए बयान से बीजेपी का कोई लेना देना नहीं है इनका व्यक्तिगत बयान है बीजेपी ऐसे बयानों को सिरे से खारिज करती है इसके बाद भी निशिकांत दुबे ने अपने व्यक्तिगत बयान को खारिज नहीं किया अफसोस तक नहीं जताया ना वापस लिया है इस देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं उसके जिम्मेदार केवल यहां के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना साहब हैं यही बयान है निशिकांत दुबे का पार्टी ने लगता है उन्हें व्यक्तिगत बयान देने की छूट दे रखी है अब सवाल है कि कोर्ट क्या करेगा इसे लेकर कई लोग उत्साह में आ गए कि कुछ ना कुछ होगा क्योंकि एडवोकेट ऑन रिकॉर्ड अनस तस्वीर ने उचित नियमों के तहत अटर्नी जनरल आर वेंकट रमणी से सांसद निशिकांत दुबे के खिलाफ आपराधिक अवमानना का मामला चलाने के लिए अनुमति मांगी है सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ वकील संजय हेगड़े ने कहा है कि भारत के अटर्नी जनरल न्यायालय की अवमानना के संरक्षक होते हैं यह देखना दिलचस्प होगा कि वे इस अनुरोध से कैसे निपटते हैं अटॉर्नी जनरल केवल केंद्र सरकार के पहले वकील नहीं हैं उनका पद संवैधानिक है जहां हम लोग उनके मुवकिल हैं नियमों के तहत अवमानना के मामले में अटर्नी जनरल से इजाजत लेनी होती है इस मामले में अटॉर्नी जनरल का इम्तिहान शुरू हो गया है क्या वे निशिकांत दुबे के खिलाफ अवमानना की कारवाई के आदेश देंगे अनुमति देंगे क्या सुप्रीम कोर्ट चीफ जस्टिस पर इतने बड़े आरोप लगाने के बाद भी चुप रह जाएगा सुप्रीम कोर्ट चाहे तो निशिकांत दुबे के खिलाफ स्वतः संज्ञान का मामला चला सकता है लेकिन अभी तक ऐसी कोई सूचना नहीं तो एक ही रास्ता बचा है कि अटर्नी जनरल आर वेंकट रमणी अवमानना का मामला चलाने की अनुमति दे दें पश्चिम बंगाल के निवासी देवदत्ता माजिद ने याचिका दायर की जिसमें मांग की गई है कि केंद्र सरकार को संविधान के अनुच्छेद 355 के तहत राज्य में बाहरी आक्रमण और आंतरिक अशांति के खिलाफ कारवाई करने का निर्देश दिया जाए इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से वकील विष्णु शंकर जैन पेश हुए उन्होंने जस्टिस बी आर गवाई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच से कहा राज्य में फौरन अर्धसैनिक बलों की तैनाती की जरूरत है इस पर सुप्रीम कोर्ट ने कह दिया आप चाहते हैं कि हम संघ को निर्देश देने के लिए परमादेश जारी करें हम पर पहले से ही कार्यपालिका के काम में दखल देने का आरोप लग रहा है कोर्ट ने कार्यपालिका के काम में दखल देने की बात पर तो कह दिया लेकिन निशिकांत दुबे की बात पर अदालत ने किसी भी प्रकार की प्रतिक्रिया नहीं दी
प्रशांत भूषण केस बनाम निशिकांत दुबे केस: स्वतः संज्ञान की चुप्पी क्यों?
यह विष्णु शंकर जैन कौन है संभल से लेकर ज्ञानवापी के मामले में हिंदू पक्ष की ओर से पेश होते रहे हैं अपने Twitter हैंडल के बायो में उन्होंने लिखा है कि वे काशी और मथुरा की बहाली चाहते हैं तो जाहिर है इस धारा की राजनीति निशिकांत दुबे को ठीक लगेगी उनके लिए विष्णु शंकर जैन की आलोचना आसान नहीं शायद कर भी ना पाएं जो भी है अगर निशिकांत दुबे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया पर आरोप लगाकर बिना कारवाई के बच जाते हैं तो यह मामला दूसरों को भी प्रोत्साहित करेगा 21 अप्रैल को जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस ऑगस्टिन जॉर्ज मसीह की बेंच के सामने एक याचिकाकर्ता अनुमति मांगी तो कोर्ट ने यही कहा अवमानना का केस दायर करने के लिए कोर्ट की इजाजत की जरूरत नहीं होती लेकिन प्रशांत भूषण के मामले में कोर्ट ने स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना का मामला चलाया था अब कानून के विशेषज्ञ ही बता सकते हैं कि निशिकांत दुबे के बयान के मामले में प्रशांत भूषण के मामले की तरह सुप्रीम कोर्ट स्वतः संज्ञान क्यों नहीं ले सकता और निशिकांत दुबे के मामले में अवमानना का मामला चलाने के लिए अटॉर्नी जनरल की इजाजत की जरूरत क्यों है क्या ऐसा भी हो सकता है कि अटर्नी जनरल वेंकट रमणी के यहां यह मामला कई दिनों तक लंबित रह जाए 2020 के जून में प्रशांत भूषण ने दो ट्वीट किए एक ट्वीट में उन्होंने तत्कालीन चीफ जस्टिस शरद बोबड़े की एक तस्वीर पर टिप्पणी की और एक अन्य ट्वीट में उन्होंने चार पूर्व चीफ जस्टिस के आचरण की निंदा कर दी इस ट्वीट में पिछले 6 साल यानी 2014 से भारत के लोकतंत्र की बर्बादी में सुप्रीम कोर्ट को भी दोषी बताया गया सुप्रीम कोर्ट ने प्रशांत भूषण के दोनों ट्वीट को स्वतः संज्ञान में लेते हुए कार्यवाही शुरू कर दी प्रशांत भूषण पर आरोप लगा कि उनके बयान से भारत की सर्वोच्च अदालत की गरिमा और उसके प्राधिकरण को ठेस पहुंची है उन पर अवमानना के तहत कारवाई शुरू की गई एक अन्य मामले में 11 साल पहले तहलका पत्रिका को दिए इंटरव्यू में उनके बयान पर भी कारवाई शुरू हुई अपने इंटरव्यू में प्रशांत भूषण ने पूर्व चीफ जस्टिस एस एच कपाडिया पर सवाल उठाए थे और कहा था कि पिछले 16 चीफ जस्टिस में से आठ भ्रष्ट थे प्रशांत भूषण के खिलाफ सुनवाई करने वाली बेंच में जस्टिस अरुण मिश्रा जस्टिस बी आर गवाई और जस्टिस कृष्ण मुरारी शामिल थे बेंच ने उन्हें अवमानना का आरोपी पाया का दोषी पाया और बिना शर्त माफी मांगने का आदेश दिया प्रशांत भूषण ने माफी नहीं मांगी जवाब में उन पर ₹1 का सांकेतिक जुर्माना लगा कोर्ट के फैसले के अनुसार जुर्माना नहीं भरने पर उन्हें जेल की सजा हो सकती थी और वकालत से 3 साल की रोक लग सकती थी प्रशांत भूषण ने जुर्माना दिया मगर कोर्ट में फैसले की समीक्षा की मांग भी की ताजा जानकारी हमारे पास नहीं है इससे ज्यादा अवमानना की बात क्या हो सकती है कि निशिकांत दुबे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना को गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार बता रहे हैं क्या इससे न्यायपालिका की गरिमा नहीं घट रही सत्ता पक्ष की विशेष जिम्मेदारियां होती हैं कि उसके सांसद उसके मंत्री उसके प्राधिकारी कोर्ट के आदेश को अधिक विनम्रता से स्वीकार करें और चुनौती अगर देनी है तो प्रक्रियाओं का पालन करें ना कि नाम लेकर चीफ जस्टिस पर अनर्गल आरोप लगाएं बारंड बेंच की रत्ना सिंह की एक रिपोर्ट को इसी संदर्भ में पढ़ा जाना चाहिए
बीजेपी की रणनीतिक दूरी: क्या वास्तव में पार्टी निर्दोष है?
दिल्ली की एक अदालत की जुडिशियल मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगला को एक सजायाफ्ता और उसके वकील ने धमकी दी प्रताड़ित किया परेशान किया इस्तीफा देने के लिए दबाव बनाया यह सब जुडिशियल मजिस्ट्रेट शिवांगी मंगला ने अपने आदेश में लिखा है बार एंड बेंच ने रिपोर्ट किया है कि मामला चेक बाउंस का था आरोपी चाहता था उसके खिलाफ फैसला ना आए जब आदेश विपरीत आया कह दिया कि तू है क्या चीज बाहर मिल देखते हैं कैसे जिंदा घर लौटती है एक जुडिशियल मजिस्ट्रेट को कहने की हिम्मत उसने कहां से जुटा ली यह घटना 2 अप्रैल की है जुडिशियल मजिस्ट्रेट ने राष्ट्रीय महिला आयोग के सामने मामले को ले जाने के लिए कहा है वकील के खिलाफ भी कारण बताओ नोटिस जारी किया है तो आप इसे एक बयान के संदर्भ में मत देखिए देखिए कि अवैध काम करने के बाद भी राज्यपाल को परवाह नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट ने उनके काम को अवैध कहा है यह कोई मामूली बात नहीं दिल्ली दंगों के मामले में पांचप साल से बिना ट्रायल के गुलफिशा शिफाउ रहमान मीरान हैदर उमर खालिद जेल में बंद हैं ट्रायल चालू नहीं हुआ जमानत नहीं मिली लेकिन तब भी उन्होंने धीरज नहीं खोया अदालत के प्रति सम्मान ही जताते रहे मगर निशिकांत दुबे चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया को लेकर कुछ भी बोल देते हैं गृह युद्ध के लिए जिम्मेदार ठहरा देते हैं क्या-क्या नहीं कहा गया कि राष्ट्रपति जज नियुक्त करती हैं तो जज उन्हें निर्देश नहीं दे सकते ना तो तर्क के आधार पर सही है ना संविधान में ऐसा कोई प्रावधान है कितनी बार यह बात बताई जाए कि सुप्रीम कोर्ट ने एक नहीं अनेक बार राष्ट्रपति के अधिकारों की समीक्षा की है और उनके फैसले को पलटा है एसआर मुंबई केस के बाद से राष्ट्रपति द्वारा बर्खास्त सरकारों को बहाल किया गया है 2016 में सुप्रीम कोर्ट की जस्टिस के एम जोसेफ और वी के बिष्ट की एक बेंच ने कह दिया और ध्यान से सुनिए कि राष्ट्रपति की विवेकाधीन शक्तियों की न्यायिक समीक्षा की जा सकती है 2025 में सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर माधवन की बेंच ने क्या कहा यही तो कहा कि राष्ट्रपति या राज्यपाल को 3 महीने के भीतर विधानसभा के पास किए बिल को मंजूरी देनी होगी या देरी का कारण लिखकर बताना होगा जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर माधवन की बेंच ने केवल राष्ट्रपति ही नहीं राज्यपाल के खिलाफ फैसला दिया है माननीय बेंच ने राष्ट्रपति पर कोई प्रतिकूल टिप्पणी नहीं की है लेकिन राज्यपाल आर एन रवि के फैसले को अवैध कहा है तो क्या निशिकांत दुबे के बेतुके तर्क के अनुसार राज्यपाल के खिलाफ भी चीफ जस्टिस फैसला नहीं दे सकते क्या राज्यपाल सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस की नियुक्ति करते हैं उनके अवैध काम के बारे में निशिकांत दुबे का क्या कहना है आर्यन रवि के खिलाफ एक्शन क्यों नहीं हो रहा उसके बजाय सुप्रीम कोर्ट पर हमला क्यों किया जा रहा है अगर फैसले से इतनी आपत्ति थी तो निशिकांत दुबे या मोदी सरकार सुप्रीम कोर्ट के इस फैसले को चुनौती देने का मन बनाती तैयारी करती मगर ऐसा नहीं किया गया अगर चीफ जस्टिस के कार्यकाल पर कोई शक था फैसले पर कोई शक था तो उनके खिलाफ सरकार महाभियोग लाने का साहस दिखाती निशिकांत दुबे आगे पहल करते लेकिन यह सब ना करके निशिकांत दुबे सुप्रीम कोर्ट और चीफ जस्टिस पर अटैक करते इसी 14 अप्रैल को निशिकांत दुबे संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर की प्रतिमा को नमस्कार करने के लिए इतनी ऊंचाई तक चढ़ गए इसके ठीक 5 दिन के बाद यानी 19 अप्रैल को एएनआई से कहते हैं
अटॉर्नी जनरल की भूमिका और संवैधानिक इम्तिहान
इस देश में जितने गृह युद्ध हो रहे हैं उसके जिम्मेदार केवल यहां के चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया संजीव खन्ना साहब हैं निशिकांत दुबे पिछले कई साल से डॉ अंबेडकर की जयंती पर माल्यार्पण कर रहे हैं जैसा कि तस्वीरों से भी पता चलता है इन तस्वीरों को देखकर आप कह सकते हैं कि संविधान निर्माता डॉ अंबेडकर को नमन करने के लिए निशिकांत दुबे ऊंचाई की भी परवाह नहीं करते इससे किसी को भी भ्रम हो सकता है कि संविधान के सम्मान में निशिकांत दुबे पहाड़ तक चढ़ सकते हैं लेकिन किसी को यकीन करना मुश्किल हो जाएगा कि चीफ जस्टिस संजीव खन्ना को गृह युद्ध का जिम्मेदार ठहराकर इन्होंने संविधान का सम्मान किया है और इन्हें अफसोस भी नहीं होगा निशिकांत दुबे ने कहा कि राष्ट्रपति जिन्हें नियुक्त करते हैं वो राष्ट्रपति को आदेश नहीं दे सकते इस हिसाब से तो चीफ जस्टिस को सरकार के खिलाफ कोई फैसला ही नहीं देना चाहिए क्योंकि नियुक्ति कानून मंत्रालय करता है और वेतन सरकार देती है ऐसी बेतुकी बात वही कह सकते हैं और कहने के बाद उस पर अड़े रह सकते हैं जिन्होंने डॉ अंबेडकर की प्रतिमा का सम्मान करने के लिए मेहनत तो की लेकिन उनके हाथ में संविधान की जो किताब है उसे शायद समझने में उतनी मेहनत नहीं की निशिकांत दुबे को बीजेपी ने आगे से ऐसे बयान ना देने का निर्देश दिया है लेकिन जो दिया है बयान उसे लेकर केवल खारिज किया है सांसद से बयान वापस लेने के लिए निर्देश नहीं दिया उनके बयान के बाद असम के मुख्यमंत्री हेमंता विश्वा शर्मा एक ट्वीट करते हैं लिखा कि भारतीय जनता पार्टी ने न्यायपालिका की स्वतंत्रता और गरिमा को भारत के लोकतंत्र की आधारशिला के रूप में हमेशा बरकरार रखा है हाल ही में माननीय भाजपा अध्यक्ष श्री जेपी नड्डा जी ने माननीय सांसद श्री निशिकांत दुबे जी द्वारा सुप्रीम कोर्ट के संबंध में की गई टिप्पणियों से पार्टी को अलग करके इस प्रतिबद्धता की पुष्टि की आदरणीय नड्डा जी ने इस बात पर जोर दिया कि यह व्यक्तिगत राय है और पार्टी के रुख को नहीं दर्शाती है उन्होंने न्यायिक संस्थाओं के प्रति भाजपा के गहरे सम्मान को दोहराया जबकि भाजपा इस सैद्धांतिक स्थिति को बनाए रखती है न्यायपालिका के साथ कांग्रेस पार्टी के ऐतिहासिक संबंधों की जांच करना उचित है कांग्रेस ने कई मौकों पर न्यायपालिका के सम्मानित सदस्यों की सार्वजनिक रूप से आलोचना की है दो बातें हैं यह मामला आलोचना का नहीं है निशिकांत दुबे ने किसी एक फैसले की आलोचना नहीं की है जो किया है वह कुछ और है आलोचना से ज्यादा है देश में धार्मिक युद्ध और गृह युद्ध के लिए चीफ जस्टिस को जिम्मेदार ठहराया है यह आलोचना कहीं से नहीं है ना समीक्षा है बल्कि दो-तीन फैसलों को मिलाकर एक जनरल और खतरनाक बयान दिया गया है इसकी जांच होनी चाहिए कि न्यायपालिका के साथ कांग्रेस के क्या संबंध रहे हैं और इसकी भी जांच होनी चाहिए कि 11 साल में बीजेपी के क्या रहे हैं सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद कि तमिलनाडु के राज्यपाल ने अवैध काम किया है बीजेपी कितना आदर करती है कि इस आदेश के बाद राज्यपाल के खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया और हेमंता विश्वा शर्मा लिख रहे हैं
सुप्रीम कोर्ट और लोकतंत्र पर विश्वास: सत्ता पक्ष की ज़िम्मेदारी और सियासी नैतिकता
कि न्यायपालिका के सम्मान की पुष्टि की है प्रतिबद्धता की पुष्टि की है निशिकांत दुबे के बयान से बीजेपी को अलग करके इसी बात की जांच होनी चाहिए और बहस होनी चाहिए कि पार्टी के आदरणीय राष्ट्रीय अध्यक्ष के खारिज कर देने के बाद भी निशिकांत दुबे ने अपने बयान पर अफसोस क्यों नहीं जताया हेमंता शर्मा के ट्वीट के जवाब में निशिकांत दुबे ट्वीट करते हैं और फान बदायूनी का एक शेर पोस्ट करते हैं जिंदगी जब्र है और जब्र के आसार नहीं हाय इस कैद को जंजीर भी दरकार नहीं पता चलता है निशिकांत दुबे को कोई फर्क नहीं पड़ा है पार्टी ने भले उनके बयान को खारिज कर दिया किनारा कर लिया लेकिन हतोत्साहित नहीं हुए इससे पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा के प्रभाव का भी अंदाजा मिलता है तो बतौर सांसद अपने अध्यक्ष को किसके दम पर चुनौती दे रहे हैं इस सवाल का जवाब इनके पास है प्रधानमंत्री मोदी के पास लोकसभा के भीतर राहुल गांधी और अडानी अंबानी पर उनके बयानों के जवाब में हमला करने के लिए निशिकांत दुबे को काफी प्रोत्साहित किया गया निशिकांत दुबे उत्साहित होते चले गए और न्यूज़ क्लिक के मामले में उन्होंने कई संगीन आरोप लगा दिए कि इसे चीन से फंडिंग मिलती है भारत को तोड़ने का काम करता है इस क्रम में उन्होंने कांग्रेस पार्टी पर भी आरोप लगाया और तीन पत्रकारों के नाम लिए अभिसार शर्मा स्वाति चतुर्वेदी और रोहिणी सिंह पर आरोप लगा दिया निशिकांत दुबे को समझने के लिए उनके इन पुराने बयानों को याद करना पड़ता है अगस्त महीने में निशिकांत दुबे का यह बयान आया और अक्टूबर 2023 में न्यूज़ क्लिक वेबसाइट के दफ्तर में छापा पड़ जाता है न्यूज़ क्लिक के दफ्तर पर दिल्ली पुलिस के स्पेशल सेल का छापा पड़ा इसके लिए जो पत्रकार फ्रीलांस करते थे उनके घरों में भी छापा पड़ गया लंबा केस मुकदमा हो गया और इसके कारण एक न्यूज़ संगठन की पूरी टीम बिखर गई उसका काम पहले जैसा नहीं रहा और कई लोग बेरोजगार हो गए यही नहीं जब चार्जशीट पेश हुई तो उसमें अभिसार शर्मा का नाम तक नहीं था रोहिणी सिंह और स्वाति चतुर्वेदी का भी नहीं क्या इसके लिए निशिकांत दुबे ने अफसोस जताया अभिसार शर्मा से माफी मांगी जबकि अभिसार शर्मा के घर छापा तक पड़ गया उस समय जेपी नड्डा ही अध्यक्ष थे क्या उन्होंने निशिकांत दुबे के बयान से किनारा किया इस छापे के बाद न्यूज़ क्लिक के संस्थापक प्रवीर पुरकायस को 7 महीने तक जेल में रहना पड़ा उन पर आतंक विरोधी कानून यूएपीए की धारा लगा दी गई न्यूयॉर्क टाइम्स के एक अपुष्ट खबर के आधार पर गिरफ्तार कर लिया गया तब न्यूज़ क्लिप ने कहा था कि किसी भी चीनी संस्था के इशारे पर समाचार या सूचनाएं प्रकाशित नहीं करता है ना ही किसी सिंघम से निर्देश लेता है इस मामले में जस्टिस बी आर गवई और जस्टिस संदीप मेहता की बेंच ने प्रबीर पुरकायस की गिरफ्तारी को ही अवैध ठहरा दिया कहा कि कानून की नजर में यह गिरफ्तारी अवैध है इन बातों को बार-बार याद करते रहना जरूरी है तभी आपको पता चलेगा मोदी सरकार के नियुक्त राज्यपाल आर एन रवि अवैध काम करते हैं
न्यायपालिका पर हमले: क्या यह एक खतरनाक प्रवृत्ति है?
यह सुप्रीम कोर्ट ने कहा उन्हें हटाया तक नहीं गया दिल्ली पुलिस गृह मंत्री अमित शाह के मातहत आती है सुप्रीम कोर्ट ने कहा प्रवीर पुरकायस को अवैध रूप से गिरफ्तार किया गया तो अवैध काम कौन कर रहा है संविधान का अनादर कौन कर रहा है कितनी बार आपको याद दिलाते रहे निशिकांत दुबे को समझने के लिए न्यूज़ क्लिक वाले मामले में उनके बयान को समझना बहुत जरूरी है क्योंकि निशिकांत दुबे मोदी की राजनीति के बेस्ट फील्डर बन गए हैं अनापश-शनाब की सारी सीमाओं को तोड़कर बोलने में उनका कोई जवाब नहीं उन्हें पता है कि किसी भी हद तक बोलेंगे कोई कुछ नहीं करेगा झारखंड विधानसभा चुनाव के समय बयान दे दिया कि बीजेपी को सपोर्ट कीजिए उम्मीदवार चाहे विकलांग हो चोर हो डकैत हो या क्रिमिनल हो किसी भी कीमत पर सपोर्ट करना चाहिए हमें अमित शाह और नरेंद्र मोदी के फैसलों पर भरोसा रखना चाहिए यह इनके बयान हैं कि जिसको भी भारतीय जनता पार्टी उम्मीदवार बना दे लंगड़ा को लुल्ला को कान्हा को चोर को डकैत को बदमाश को जिसको बना भारतीय जनता पार्टी के केंद्रीय नेतृत्व हम लोगों को माननीय राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह जी प्रधानमंत्री मोदी जी रघुवर दास जी के ऊपर भरोसा होना चाहिए कि वो जो भी चुनाव करेंगे वो सही चुनाव करेंगे क्योंकि भारतीय जनता पार्टी एक ऐसी पार्टी है जो कि करप्ट पार्टी नहीं है 5 साल में ना राज्य में ना केंद्र में हमने किसी को कमाने दिया और ना कमाया ना पैसा खाया ना पैसा खाने दिया अगर बीजेपी निशिकांत दुबे के विचारों से किनारा करने लग जाए तो इस काम के लिए उसे किनारा डिपार्टमेंट बनाना पड़ेगा और एक किनारा महासचिव नियुक्त करना पड़ेगा अब आते हैं सुप्रीम कोर्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसलों को लेकर सवाल उठते रहे हैं अब भी उठते हैं आलोचनाएं भी होती हैं उन आलोचनाओं की एक दूसरे से तुलना या बराबरी ठीक नहीं और खासकर निशिकांत दुबे के बयान से तो बिल्कुल ठीक नहीं केवल सांसद ही नहीं उपराष्ट्रपति भी सुप्रीम कोर्ट पर हमला करते हैं उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ और निशिकांत दुबे के कुछ बयान कुछ मामलों में उनके बयानों में समानता नजर आती है निशिकांत दुबे को इतनी दिक्कत है तो चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के खिलाफ महाभियोग का प्रस्ताव पेश करें जिसका अधिकार संविधान ने दिया है मगर उन्होंने ऐसा नहीं किया जब विपक्ष की तरफ से महाभियोग का प्रस्ताव पेश किया गया सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस के खिलाफ तब बीजेपी ने साथ नहीं दिया जब राज्यसभा के सभापति और उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ के खिलाफ विपक्ष ने अविश्वास का प्रस्ताव लाया तब बीजेपी ने विपक्ष का साथ नहीं दिया तो यह बात संवैधानिक अधिकारों और प्रावधानों के इस्तेमाल की नहीं है सरासर कोर्ट को धमकी देने की है Twitter पर पहले कोर्ट के बारे में ट्रोल किया जाता है अनापशनाब बातें लिखी गई और फिर उसी दिन निशिकांत दुबे का बयान आता है जिस पर अभी तक वे कायम हैं और इस व्यक्तिगत विचार के लिए बीजेपी ने उनके खिलाफ कोई एक्शन नहीं लिया सबकी नजरें इस बात पर हैं कि सुप्रीम कोर्ट निशिकांत दुबे के इस बयान पर चुप रहेगा या कारवाई करेगा अवमानना का नोटिस जारी करेगा या सख्त टिप्पणी करके छोड़ देगा कोर्ट क्या करेगा यह कोई नहीं जानता लेकिन क्या चीफ जस्टिस या सुप्रीम कोर्ट इतना हल्का हो जाए कि एक सांसद के बेतुके बयान पर आपा खो दे और कारवाई करें फिर प्रशांत भूषण के मामले में स्वतः संज्ञान लेकर अवमानना की कारवाई को आप कैसे देखेंगे यह सब भी देखना पड़ेगा 16 अप्रैल को व कानून पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस ने पश्चिम बंगाल के मुर्शिदाबाद दंगे को लेकर नाराजगी जताई कि जब कोर्ट के सामने मामला है तो यह सब क्यों हो रहा है क्या कोर्ट यही बात निशिकांत दुबे के संदर्भ में कहेगा कि जब कोर्ट के सामने यह मामला है तो गृह युद्ध या धार्मिक युद्ध की बात सांसद कैसे कह सकते हैं
संविधान निर्माता की प्रतिमा को सलाम, पर संविधान की आत्मा को चुनौती?
11 साल से मजबूत सरकार के सबसे मजबूत नेता के प्रधानमंत्री रहते हुए कहां पर गृह युद्ध चल रहा है और अगर गृह युद्ध चल रहा है तब फिर देश के गृह मंत्री क्या कर रहे हैं क्या वे भी नाकाम हो गए क्या प्रधानमंत्री अपने सांसद को बयान वापस लेने के लिए कहेंगे आप ऐसी उम्मीद कर सकते हैं लेकिन याद कर लीजिए जब बीजेपी के सांसद रमेश विदुड़ी ने भरी लोकसभा में मुस्लिम सांसद दानिश अली को गाली दी अपशब्द कहे तब क्या हुआ 3 महीने के बाद रमेश विदुड़ी ने इस बयान को लेकर अफसोस प्रकट किया था 3 महीने के बाद तुरंत कोई कारवाई नहीं हुई कारण बताओ नोटिस दिया गया प्रिविलेज कमेटी का गठन हुआ और यही नहीं इस दौरान पार्टी ने उन्हें राजस्थान के टोंक में चुनाव का प्रभारी भी बना दिया रमेश विदुड़ी से बीजेपी ने कभी किनारा नहीं किया लोकसभा में टिकट नहीं दिया तो विधानसभा में कालका जी से दे दिया जहां वे चुनाव हार गए हमने रमेश विदुड़ी का जिक्र क्यों किया क्योंकि निशिकांत दुबे ने पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी को मुस्लिम आयुक्त कहा है इस बयान की आलोचना जेपी नड्डा ने नहीं की ना बीजेपी ने इस बयान से किनारा किया है पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने निशिकांत दुबे को लेकर कुछ कहा भी नहीं उन्होंने वफ कानून को लेकर एक ट्वीट किया कि यह कानून मुसलमानों की जमीन पर कब्जा करने के खतरनाक इरादे से लाया गया होगा उम्मीद है सुप्रीम कोर्ट इन इरादों पर रोक लगाएगा इस पर निशिकांत दुबे ट्वीट करते हैं कि आप चुनाव आयुक्त नहीं मुस्लिम आयुक्त थे झारखंड के संथाल परगना में बांग्लादेशी घुसपैठियों को वोटर सबसे ज्यादा आपके कार्यकाल में बनाया गया पैगंबर मोहम्मद साहब का इस्लाम भारत में 712 में आया उसके पहले तो यह जमीन हिंदुओं की या उस आस्था से जुड़ी आदिवासी जैन या बौद्ध धर्मावलंबी की थी मेरे गांव विक्रमशिला को बख्तियार खिलजी ने 1189 में जलाया विक्रमशिला विश्वविद्यालय ने दुनिया को पहला कुलपति दिया अतीश दीपांकर के तौर पर इस देश को जोड़ो इतिहास पढ़ो तोड़ने से पाकिस्तान बना अब बंटवारा नहीं होगा तो कहां से कहां बात को ले जाते हैं कितनी बातों की जांच की जाए तथ्यों की पुष्टि की जाए कभी पत्रकारों पर चीन से पैसा लेकर देश तोड़ने के आरोप लगा देते हैं तो कभी पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त को मुस्लिम आयुक्त कहते हैं Twitter पर आप वोटिंग को लेकर धांधली को लेकर कुछ लिखिए तो तुरंत चुनाव आयोग का एक स्पष्टीकरण आता है कि यह बात गलत है लेकिन क्या चुनाव आयोग इस पर बोलेगा कहेगा कि पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त पर मतदाता सूची में बांग्लादेशी नागरिकों के नाम जोड़ने का आरोप सरासर गलत है कह देगा चुनाव आयोग पिछले 15 साल से कितने ही मुख्य चुनाव आयुक्त आए किसी से जांच करा लेते कि एसवाई कुरैशी ने कितने बांग्लादेशी घुसपैठियों के नाम वोटर लिस्ट में डलवाए हैं इन्होंने क्या कोई शिकायत दी है या कुरैशी मुसलमान है तो उनकी निष्ठा को लेकर एक सांसद कभी भी कुछ भी बोल सकते हैं इसलिए हमने रमेश विदुड़ी के बयान की याद दिलाई ताकि आप समझ पाए कि निशिकांत दुबे के एक बयान से बीजेपी ने किनारा किया है अपनी राजनीति से नहीं इस राजनीति से किनारा कर लेगी तो बीजेपी क्या करेगी नड्डा जी क्या करेंगे निशिकांत दुबे क्या करेंगे।